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बाह्य कियायें किया करते हैं और जिसमें चतु आदि १० इंद्रियों के गोलक अथवा करता है । ( २ ) सूक्ष्म शरीर यह अदृश्य शरीर प्रकृति के उन अंशों से बनता है। जो स्थूल भूतोंके प्रादुर्भाव होनेसे पहिले सत, रज और तमकी साम्यावस्था रूप प्रकृति में विकार आने से उत्पन्न होते हैं । सूक्ष्म शरीर के १७ अवयव हे 1 ५ ज्ञानेन्द्रियों की अन्तारिक शक्ति x ५ प्राण ५ तन्मात्रा सूक्ष्मभूत x १मन १ बुद्धि x | ये सूक्ष्म शरीर को निर्माण करते हैं । समस्त जगत सम्बन्धी आन्तरिक क्रियायें इसी शरीर के अवयवों द्वारा हुआ करती है। ( ३ ) कारण - शरीर। यह कारण रूप प्रकृतिका वह अंश होता है जो विकृत नहीं होता। इसके विकास के परिणाम ही से मनुष्य योगी होता है और समाधिस्थ होनेकी योग्यता प्राप्त करता है।
१७ द्रव्य मिल कर
सूक्ष्म शरीर की कार्य प्रणाली
म की प्रेरणा बुद्धि के माध्यम से मन को होता है। जो समस्त ज्ञान और कर्म इंद्रियों का अधिष्ठाता है। मन की प्रेरणा से समस्त इन्द्रियें अपना अपना कार्य करती हैं। सूक्ष्म शरीर के १० करण (५ ज्ञानेन्द्रिय + ४ उनके विषय सूक्ष्मभूत मस्तिष्क में रहते हैं । ५ प्राण समस्त शरीर में फैले रहते हैं। श्वासोच्छवास, भोजन मेदे में पहुंचना, रक्त, प्रवाह आदि उनके कार्य हैं जो निरंतर होते रहते हैं। बुद्धि मस्तिष्क में, मन चित्त और आत्मा शरीर के केन्द्र हृदयाकाश में रहते हैं। मृत्यु केवल स्थूल शरीर की होती है। सूक्ष्म और कारण शरीर आत्मा के साथ मृत शरीर से निकलकर "यथा कर्म यथा श्रुतम् " दूसरी योनियों में आया जाया करते हैं। और आत्माके साथ बराबर उस समय तक रहते हैं जब तक जीव मुक्ति प्राप्त नहीं कर लेता । मुक्ति प्राप्त करने पर