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विषय में कहने की कही है। ईश्वर वादी कर्मफल देने के लिये ईश्वर की सत्ता को प्रमाणित करते हैं उनके मत में ईश्वर सम्पूर्ण कर्मों का फल नहीं देता अपितु जिस कर्म का फल देना चाहता है, उसको देता है।
"ईश्वरः कारणं पुरुष कर्माकल्यदर्शनात् । "
अर्थात् - हम देखते हैं कि मनुष्य कम करता है और उसके फल को नहीं भोगता इससे जाना जाता है कि कर्मफल दाता कोई अन्य शक्ति है. वह जिस कर्मका फल देना चाहती है, उसीका देती हैं | न्यायमतानुसार फल को ईश्वराधीन माना है। स्वामी दयानन्द जी ने 'सत्यार्थप्रकाश में इसको तीसरे नास्तिक का नाम दिया है क्योंकि कर्मफलको ईश्वराधीन मानने में अनेक आपत्तियां हैं। जो ईश्वर किन्दी कमों का फल देता है किन्हीं का नहीं वह किन्हीं जीवां बगैर कर्म किए ही फल देता होगा। इस प्रकार वह पक्षपाती और अन्याय दोषका भागी ठहरेगा ।
स्वामीजी ऐसे स्वच्छन्द ईश्वरको ईश्वर माननेके लिये तैयार नहीं हैं इसलिये उन्होंने गौतम को नास्तिक की उपाधि सुशोभित किया है। ईश्वर किसी कर्मका फल देता है किसीका नहीं इसका कारण क्या है | क्या वह जीवों की भलाईका इच्छुक है ! यदि ऐसा है तो सभी जीवोंको सुखी बना देता या मुक्ति दे देता. जिससे जीव भी सुखी हो जाते और ईश्वर भी टोंसे छूट जाता। यदि और कुछ कारण है तो वह कारण गुप्त होगा जिसका रहस्य ईश्वर के सिवाय और कोई नहीं जान मुक्ता 1
वैशेषिकदर्शन
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र गया वैशेषिक दर्शन । वैशेषिक दर्शन ईश्वरको मानता है या नहीं यह विद्वानोंके लिये आज भी विवादका विषय बना हुआ