________________
( ६१६ १
ग्रह एकत्रित ये किन्तु गणित से यह निश्चित नहीं होता कि ये किस समय एकत्रित थे। यदि थोड़ी देर के लिये ऐसा मान भी लें कि ये सब ग्रह अस्तंगत थे तो भारतादि प्राचीन पुराणों में इस का उल्लेख क्यों नहीं मिलता हाँ उल्लेख मिलता २६०० वर्ष के बाद बने हुये सूर्यसिद्धान्त आदि नवीन ग्रन्थोंमें "भारतीय ज्योतिष शास्त्र" पृष्ठ २६
इसी प्रकार कलियुग आरम्भ की कल्पना है। इस के विषय में भी शास्त्रों का मत हैं। जय सूर्य चन्द्रमा तथा बृहस्पति एक राशि में आते हैं तब कृत य ग श्रारम्भ होता है परन्तु ज्योतिर्विद जानने हैं कि इन का एक राशि में आना नितान्त असम्भव है।"
श
ऐतिहासिकोंने इस कल्पनाका एक अन्य कारण भी बताया है । वह यह है कि खाल्डियन लोगों में सृष्टि संवत् या युग ४३२०० वर्ष का माना जाता है. उसी के आधार पर इस कलि का जन्म देकर इसमें ४ विदियां और बढ़ा दी इसकी ४३२००००००० सृष्टि की आयु बनादी ।
मतलब यह है कि कलियुग आदि की कल्पना निराधार और नवीनतम है। प्राचीन समय में भारतवर्ष में उत्सर्पिणीका सिद्धान्त प्रचलित था. aौदिक ज्योतिष्क के प्राचीन ग्रन्थ आर्य सिद्धान्त अध्याय ३ श्लोक में है ।
ह
'उत्तरी गार्धं च पथादवसर्पिणी युगाधं च मध्ये युगस्य सुष्मादावन्ते दुध्यामेन्दु चाद"
इस में काल के दो भेद किये हैं । पहिले के भाग का नाम उत्सर्पिणी और दूसरे का अवसर्पिणी रक्खा है। इन दोनों भाग