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के ६-६ विभाग सुष्मा दुष्मा श्रावि किये गये हैं। यदि उपरोक्त शोक के साथ चैदिक ज्योतिष का नाम न होता तो कोई भी ध्यक्ति इसको ठौदिक सिद्धान्त कहनेके लिये उद्यत न होगा क्यों कि शब्दकल्पद्रुमकोश, और प्राप्टेकी संस्कृत इङ्गलिश डिक्शनरी में भी इसको जैनियों की ही मान्यता यतलाई है। इसी काल चक्र का नाम विकासवाद तथा हासवाद है।
कर्म फल और ईश्वर कर्म, फल कैसे देते हैं, इसके जानने के लिए सबसे पहले यह जानना श्रावश्यक है कि कर्म क्या वस्तु है ?
भारतके दर्शनकारोंने मन, बचन, कायकी क्रियाको कर्म माना है । परन्तु जैन शास्त्र इसकी और भी अधिक गहराई में पहुंचा है, और उसने कर्मके दो विभाग किए हैं-(१) भावकम, (२) द्रव्यकर्म।
भावकर्म मन, बुद्धिकी सूक्ष्म-क्रिया या आत्माके संकल्परूप प्रतिस्पंदन को भावकर्म कहते हैं।
द्रव्यकर्म यह जैनदर्शनका पारिभाषिक शन है। इसके समझनेके लिए कुछ अन्तष्टि होनेकी आवश्कता है। जैन शास्त्रके इस सिद्धान्त को, कि प्रत्येक क्रिया का चित्र उतरता है; विज्ञान ने स्वीकार कर लिया है । अतः वैज्ञानिक दृष्टि से भी यह सिद्ध हो चुका है कि
आत्मा जो संकल्प करता है, उस संकल्पका इस वायुमण्डल में चित्र उतरता है। अमेरिका के बौझानिकों ने इन चित्रों का फोटो