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है एवं जब कुछ क्रियाशील होता है। तब त्रेता कहलाता है तथा जय आलस्य को छोड़ कर अपना कार्य करता है तो कृतयुग कहलाता है । मनुस्मृतिकार ने “राजा हि युगमुच्यते" अर्थात् राजा को ही युग कहते हैं, ऐसा कहकर सम्पूर्ण विवाद को मिटा दिया है क्योंकि यहाँ 'हि' शब्द अन्य अर्थों के निवारणार्थ प्रयुक्त हुआ हैं । यही भाव ऐतरेय ब्राह्मण के हैं । अब यह बात सिद्ध हो गई कि ब्राह्मण काल में कृत युग आदि किसी समय विशेष का नाम नहीं था, अपितु राजा के नाम थे। यहां एक बात विचारणीय है कि फलि के लिये बुरे भाव अथवा इसे बुरा समझा जाना और कृतको अच्छा समकनेका भाव उस समय उत्पन्न हो गया था, इसका आधार क्या Į
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इसका उत्तर स्प है कि वैदिक कालमें जूने के पासों का नाम कृत आदि था जैसा कि हम दिखला चुके हैं। उन पासों में कृत के आने से विजय होती थी और कलि के आने से हार। श्रतः स्वभावतः कलि शब्द के अर्थ खराब और कृत शब्द के अर्थ सुन्दर शुभ प्रचिलित हो गये थे, उसी भाव को यहाँ दर्शाया है। तथा च तैसिरोया में आया है कि
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"ये पचस्तोमाः कलिः सः
अर्थात पांचवां स्तोम कलि हैं।
"ये वै चत्वारः सोमा कृतं तत् ।"
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चतुर्थ सोमत है | स्तोम नाम यज्ञका प्रसिद्ध है। पूर्व समय में वर्ष में पाँच यश ऋतुओं के अनुसार हुआ करते थे घठी ऋतु शीत अधिक होने के कारण कुछ भी कार्य नहीं होता था. ऐसा कई विद्वानोंका मत है। जो भी हो, परन्तु पाँच यज्ञ होते थे, उनमें जो बसन्त ऋतु यज्ञ होता था उसका नाम कृत था. ग्रीष्मके का