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इसलिए ५ सौर वर्षो कलि ५ वर्ष, द्वापर १०
मास आते हैं। पांच पांच वर्ष में यह चारों मास एकत्रित होते हैं। नाम बेदांग ज्योतिष में युग है । इस प्रकार सौर वर्ष, त्रेता १५ सौर वर्ष और सतयुग
२.०
सौर वर्ष और का एक गुहा । पर इतना पर्याप्त नहीं है । और लम्बे काल मानोंकी आवश्यकता प्रतीत होती है उनकी उपलब्धि इस प्रकार होती है ।
चांद्र वर्ष में ३५५ दिन और सौर वर्ष में ३६६ दिन होते हैं यो अपनी सुविधा के लिये प्रति तीसरे वर्ष एक महीना ओड़ कर दोनों को मिला लिया जाता है पर ऐसा न किया तो ३५५ सौर वर्षों में. दोनों फिर मिलेंगे । श्रतः ३४५ सौर वर्षों का भी एक प्रकार का युग है इसको मनुकाल कहते हैं । ३५५ को ५ से भाग देने से ७१ युग आता है। इसलिये कहा जाता है कि एक मन्वन्तर में ७१ युग होते हैं । १००० युग अर्थात् २००० सौर वर्षों का एक कल्प होता है। एक कल्प में १४ मनुकाल होते है । इन में ४० वर्ष लगे। दो दो मनुषों के बीच में दो वर्ष का सन्धिकाल होता है. इस प्रकार १५ सन्धि'लों में ५०००-४६७० - ३० वर्ष लगते हैं । कल्प का नाम धर्मयुग या महायुग हैं। वो युगों के बीच में काल होता है । सन्धिकाल युग की आयुका दशांश होता है । fat को मिलाकर यगों की इस प्रकार हुई ।
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त्रेता १५०० वर्ष और सत
कलि ५०० वर्ष द्वापर १००० वर्ष [ग] २००० वर्ष | "
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देवों का अहोरात्र
उत्तरीय व प्रदेश ६ मासकी रात्री होती है। अनेक विद्वानों ने सप्रमाण यह सिद्ध किया है कि शास्त्रों में जो देवों के अहोरात्र का वर्णन है वह उसी स्थान का वर्णन है। अतः यह सिद्ध है कि यह कल्पना न वैदिक है और न प्राचीन है।
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