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वापर
का एक युग माना जाता है। कलिकी आयु १ युग होती है, की युग त्रेताकी ३ युग, और सतयुगकी ४ युग। इसप्रकार १० अर्थात् ४,३६,००० वर्षका एक चतुर्भुग या महाबुन होता है । ७१ महायुगा एक मन्वन्तर और १००० महायुगों का एक कल्प होता है। इस प्रकार एक कल्पमें १०६० ÷ ७१ होते हैं और ६ महायुग अन्य रहते है।
१४ गम्यन्तर
गोदिक आयका ही माम प्रचलित है। इसके हिसाब से अन्तिम सतयुग प्रारम्भ कालको, जोकि वैदिक समारम्भ -कोल था, १७.२८,००० १२,६६,००० ८.६.००० x ५००० ३८ ६३,००० वर्ष हुये ।
यांक मानके और भी कई प्रकार है। श्री गिरीन्द्रशेखर योष मे अपने पुराण प्रवेशमें इस प्रश्न पर अच्छी खोजकी है। उसका सारांश श्री पी०सी० महालनबीसके एक लेख में जो १६३६ जूनकी (संख्या) में छपा था दिया गया है। यह विषय रोचक है और वैदिक काल विद्यार्थियोंको विशेष महत्व रखता है। इसलिये हम यहाँ उसका थोड़े दिग्दर्शन कराये देते हैं।
युगका अर्थ है जोड़, मिलना। जहां हो या दोसे अधिक से अधिक वीजका मेल होता है युग, युति योग होता है । विशेषतः युग वह मिलन है जो नियम कालके बाद फिर फिर होता रहता है।
हमारे यहाँ चार प्रकारके मांस प्रचलित है। (१) उ० सूर्योदयोंका सावन मास. (२) एक राशिसे दूसरी राशि तकका सौर मास (३) पूर्णिमा से पूर्णिमा तकका चान्द्रमास और (४) चन्द्रमा का पृथ्वी परिक्रमा में लगने वाला मात्र भास इन सबकी एक दूसरे से मिस है यदि हम सब अधिक लघुतमसमायवर्च निकाला जाय तो हम देखते हैं कि ५ सौर वर्षाने ६० सौर मास. ६? सावन मास. ६० चान्द्र मास. और ६७ नाक्षत्र