________________
वह प्रमाणों से सिद्ध नहीं होता इसलिये अभाव है अनः उन्होंने याह पहले ही प्रसिद्ध शब्द रख दिया ताकि प्रश्नका अवसर ही न यावे, तथा अभाव चार प्रकारके हैं उनमें से कौनसा अभाव है। इत्यादि अनेक प्रश्न उत्पन्न होते। यह तो योग्य स्नातकने अपने लेख में स्पष्ट स्वीकार किया है कि यह इंश्वर साधक की सिद्धि में विघ्नकारक हैं कि यह ठीक है परन्तु आपका यह लिखना ठोक नहीं कि फिर सांख्याचार्यने ईश्वरकी सिद्धिके झगड़ेमें अपना समय नहीं गंवाया क्योंकि सांख्याचार्य ने ईश्वरका खण्डन प्रवन युक्तियों और प्रमाणोसे क्रिया है । अतः लेखक को यह लिखना पाहिये था कि इसीलिये सोख्याचार्य ने ईश्वरका जोरदार खण्डन वित रहाया मम दयां आनकी उसका उत्तरतोआपने स्वयंसूत्रों का अर्थ करके दे दिया है। अतः ये सब बातें व्यर्थ हैं। शेष रहते हैं.ास्तिकवादमें दिये गये, सर्वक्ति भादि सूत्र जिनको उन्होंने ईश्वर सिद्धि में दिये हैं। अतः अब हम उनपर विचार करते हैं । प्रथम हम सूत्र लिखकर उसका अर्थ लिखने हैं पुनः शंकासमाधान ।
स हि सर्ववित् सर्वकर्ता । ३ । ५६ ।
प्राचीन प्राचार्योंने इसके दो अर्थ किये है । एक प्राचार्य तो 'स' शब्दसे प्रधान लेते हैं ।तथा दूमरे. आचार्य मुक्त पुरुष । ये दोनों ही अर्थ सांख्य प्रक्रिया के अनुकूल हैं। विज्ञानभिक्षु के भाष्यमें जिसको प्रेश्वर माध्य कहा जाता है लिखा है कि
सः इत्यस्य पूर्वसर्गे कारण लीनः पुरुषएव गृह्यते स एव सर्गान्तरे सर्वविन , सर्वकर्ता, ईश्वरः आदि पुरुषो भवति ।
अर्थात्-यहाँ 'स' प्रकृति लीन महा योगी है । वह योगी ही सर्गान्तर में सर्व वित्त. सर्व का ईश्वर प्रादि पुरुष होता है । अर्थात् जीवन मुक्त महामात्माको ही ईश्वर कहते हैं। अब इस पर