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अनीश्वरवादी श्रे. नदीन विदा लममें इनके साथ ईश्वरेच्छा भी जोड़ दी ! वादमें नैयायिकोंने अष्टको बिलकुल ही उड़ा दिया
और उसका स्थान ईश्वरको दे दिया। ___एवं दर्शन दिग्दर्शनमें राहुलजी" लिखते हैं कि-"ईश्वरको पीछेके अन्धकारोंने आठ गुणों वाला माना है । किन्तु कणाद सूत्रोंमें ईश्वर के लिये कोई स्थान नहीं है । वहां तो ईश्वरका काम असे लिया गया है।" ___ इत्यादि अनेक प्रमाण इस विषयमें दिये जा सकते हैं परन्तु हम विस्तारभयसे यहीं समाप्त करते हैं।
यदि अन्तरंग परीक्षा करें तो भी हम इसी परिणाम पर पहुंचेंगे कि वैशेषिक दर्शन में ईश्वरके लिये कोई स्थान नहीं है। क्योंकि वैशेषिक जितने पदार्थ मानता है उनमें ईश्वर नामका कोई पदार्थ नहीं है । यथा वैशेषिक छह पदार्थ मानता है। द्रव्य, गुण, कर्म. सामान्य, विशेष, समवाय, इनमें द्रव्य नव प्रकारके होते हैं। पृथ्वी, जल, तेज. वायु. आकाश, काल, दिशा, आत्मा और मन ।
इनमें वैशेषिक पात्माको प्रति शरीर पृथक पृथक् असंख्य या अनंत मानता है । वह आत्मा के लिए कहता है कि यह स्वल्पविषयक अनित्य ज्ञानवान है।
आत्मा के सामान्य गुण
विशेषगुण (२) संख्या
(१) बुद्धि (२) परिमाण
(२) सुख (३) पृथक्त्व
(३) दुःख (४) संयोग
(५) इच्छा (५) विभाग
(५) द्वेष