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( ५८८ ) (७) वेद कहता है जगत नित्य है. ये कहते हैं. अनित्य है :
(E) वेदोंमें यज्ञादिमें मांस व शरावका विधान है. ये कहते हैं निषेध है।
(6)ोहोंमें पुनमक्त, परस्पर विरुद्ध. असम्भव, व्यर्थ श्रादि अनेक दोष हैं. ये कहते हैं नहीं है।
(१०) वेदों में अनेक देवतावाद है. ये कहते हैं नहीं है।
इस प्रकारसे श्री स्वामी दयानन्द जो य आयममाज वेदोंके निन्दक ही नहीं अपितु महान अमित्र भी हैं. क्योंकि उन्होंने वेदों की आवाज दया कर उनसे बलात् अपनो बातें कहलानेका प्रयत्न किया है । इस प्रकार ये ही वेद निन्दक ठहरे. और सनातन धर्मी
और जैन श्रादि पारित करे। जोकि वे तो मान जो गुण है उन्हीं गुणोंको कह कर वेदोंकी स्तुति करते हैं।
कलि कल्पना वेद आदि शास्त्रोंसे तथा वर्तमान विज्ञानसे भी ग्रह सिद्ध है। कि यह जगत अनादि निधन है इसपर भी सृषिकी उत्पत्ति मानने बालोंने इसकी रचनाकी तिथि आदि तक बतानेका साहस किया है । जोकि युगोंकी मान्यता पर निर्भर है. अतः । इन युगोंका ऐतिहासिक विवेचन भी श्रावश्यक है।
स्वामी दयानन्दजी ने ऋग्वेदादि भाष्य भूमिकाके वेदोत्पत्ति प्रकरणमें मनुस्मृतिके श्लोकोंको उद्धृत करके लिखा है कि चार हजार वर्षका कृतयुग (सतयुग) होता है और तीन हजारवर्षका त्रेतायुग दो हफारवर्षका द्वापर एवं एक हजारवर्षका कलियुग । __इन सबके मन्धांशोंके २०० वर्ष मिलाने से १२.०० वर्षोंका एक चतुर्युग होता है। परन्तु ये वर्ष मनुष्योंके वर्ष नहीं अपितु देवोंके वर्ष हैं जो कि हमारेसे ३६० गुणा अधिक होते हैं इसलिये चतुर्युगका मान हुआ४३२४११०इसी प्रकार ७१ चतुर्युगोंका एक