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पुलिकिसन द्वितीयका है. यह चालुक्यका है. जो कि ई. सन ६३४-३५ का है __इससे पूर्वके किसी भी लेख में इन युगोंका कहीं भी पता नहीं लगता । इसलिये खुदाईके प्रमाणोंसे तो इसको प्राचीन कहा नहीं जा सकता | अब रह गया ग्रन्थोंका प्रमाण. पुस्तकोंमें सबसे प्राचीन पुस्तक ऋग्वेद है. इसमें युग शब्दका अनेक बार प्रयोग हुआ है। इसलिये हम भी प्रथम ऋग्वेदमें आये हुये युग श्रादि शब्दों पर विचार करते हैं। • ऋग्वेद मं० १० सूत्र ६७ औषधी सूक्त है उसका प्रश्रम मंत्र या औषधीः पूर्वा जाता देवेभ्यस्त्रियुग पुरा !
इस मंत्रमें आये हुये ( त्रियुगं) शब्दसे कई विद्वानोंने सत्ययुग श्रादि अर्थ निकालने का प्रयास किया है पं० आर्यमुनि नी ने वेद कालका इतिहास, नामक पुस्तकमें लिखा है कि यहां त्रेता द्वापर, सथा कलियुगको न्यून कथन करके इस प्रथम ( सत्य ) को प्रधान सर्वोपरि माना है। आगे श्राप लिखते हैं कि यह वह समय था जब कि आर्य जाति तिब्बत में निवास करती थी। पं. रामगोविन्द जी वेदान्त शास्त्रीने भी अपने ऋग्वेद भाष्य में लिखा है कि तीन युगों (सत्य त्रेता और द्वापर या वसन्त वर्षा शरद ) में जो औषधियाँ प्राचीन देवोंने बनाई हैं । यही मन्त्र यजुर्वेद अ० १२ में भी आया है श्री स्वामीजी महाराज ने भी वहां युग शसके अर्थ सत्य युगादि तथा वष भी किये है।
इन भाष्यों की समीक्षा इस सूक्त में २३ मन्त्र हैं, उन सबमें प्राय औषधी से रोग दूर करनेकी प्रार्थना की गई है । यथा दूसरे ही मन्त्रमें लिखा है कि