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असंख्य पदार्थ और विद्याओं से युक्त है। इस कारण असंख्यात प्रयोजनों के लिये तुमको परमात्मा व्यवहारोंमें स्थित करें
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क्या अब भी कोई पक्ष पाती यह कहने का साहस कर सकता है कि यहां युगों का ही वर्णन है। इतना ही नहीं अपितु श्री स्वामी जी महाराजने इस मंत्र के भावार्थमें इसको बिल्कुल ही स्पष्ट कर दिया है। यथा
'इस मंत्र में परमेष्ठी, सादयतु इन दो पदों की अनुवृत्ति श्राती है। तीन साधनों से मनुष्यके व्यवहार सिद्ध होते हैं । (२) यथार्थ विज्ञान (२) पदार्थ तोलनेक लिये तोलके साधन बांट और (३) तराजू आदि फिर भी भाष्य भूमिका में यह मंत्र किस प्रकार युगकी पुष्टिमें लिखा गया यह अवश्य कुछ रहस्यमय घटना है 1 अथर्ववेद
श्रथ वेद भाष्यकार पं० क्षेमकररण दास जी ने
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सू० २१२१ को इसी करण में लगाया है, तथा वैदिक सम्पत्ति (जिसका प्रचार आर्य समाज में विशेष है तथा सभी आर्य विद्वानों ने जिसकी प्रशंसा करने में अपना गौरव समझा है ) में भी यही मंत्र लिखकर सृष्टिकी आयु निकाली है। मंत्र निम्न प्रकार है: --
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शतं ते युतं हानान् द्वे युगे त्रीणि चत्वारि कृष्णः । इन्द्रानो विश्वे देवास्ते नु मन्यन्ताम हुगीयमान | २११ | उपरोक्त आर्य विद्वान तथा अन्य भी इस मंत्र का अर्थ इस प्रकार करते हैं कि अंकानां वामतो गति" के अनुसार ४३२ के अंक लिख कर उन पर सौकी तीन बिन्दु तथा अयुत दस हजार की विन्दु रखने से सृष्टिकी आयु ४३२००००००० सिद्ध हो गई। मुसलमानों आदिसे शास्त्रार्थों में भी आर्य विद्वान इस प्रमाणका दिया करते हैं तथा कहा करते हैं कि जिसने यह जगत स्वा है उसने इसकी आयु भी निश्चित की है।