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हे मातृरूप औषधियों तुम्हारे जन्म असीम हैं और तुम्हारेप्ररोहण अपरिमित है तुम सौ कर्मों वाली हो। तुम मुझे आरोग्य प्रदान करो ( मे अगदं कृत ) इससे स्पष्ट सिद्ध है कि कोई रोगी औषधी को सन्मुख देखकर अथवा रखकर उससे प्रार्थना कर रहाहै । फिर कसे माना जाये कि कोई व्यक्ति सत्ययुगमें तीन युग पहले अर्थात लाखों वर्ष पहले उत्पन्न हुई औषधो से प्रार्थना कर रहा है। यदि कोई व्यनि : करे भी तो नागल मनापके रिशना पयः माझा जायेगा । बहुत क्या विवादास्पद मन्त्रसे ही प्रथम लिखा है कि इन पीले रंगकी औषधियोंके १०७ स्थान मैं जानता हूँ बस स्पष्ट है किये औषधियां उसी समय विद्यमान थीं न कि लाखों वर्य पहले, अतः इससे वर्तमानयुगांकी कल्पना करना नितान्त भूल है। अब रह गया यह प्रश्न कि यहाँ युग शब्दके क्या अर्थ हैं ?
यग शब्द का वैदिक अथ युग शब्द वेदों में अनेक अर्थ में प्रयुक्त हुआ है।
(१)--(अतु) यजुर्वेदके भाष्यमें इसी प्रथम मन्त्रका भाइरस करते हुए युग शब्दका अर्थ तीन ऋतुमें , उन्चट. महाधर, ज्वालाप्रसाद मिश्र तथा पं. जयदेवजों आदि सभी विद्वानोंने किया है, तथा च ऋग्वेदालोचन में पं० नरदेवजी ने भी ऐसा ही अथं किया है। (२) मास । दीर्घतमा मामदेयो जुजुर्वनि दशमे युगे ।
ऋ० प्र० १.सू. १२५ । ८ यहां शिवशङ्कर जी काव्यतीर्थ वैदिक इतिहासार्थ निर्णयके पृष्ठ १७६ में युगके अर्थ मास महीने करते हैं। अन्य विद्वानोंने भी कई स्थानों पर ऐसा अर्थ किया है।
३- (पक्ष) यजुनेद अ०१२ मंत्र १११में महीधर आदि सभी