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और कर्मकी स्वतन्त्र सत्ता मानकर भी उन्हें द्रव्यके आधीन कर दिया । जातिकी कल्पना भी एक अनोखी दर्शनकार कणाद पर श्रीमान पं० अशोकने आप लिखने से कि पांच से व्यक्ति छठे पदार्थका भी अस्तित्व बताता है उसे अपने सिर पर सीगोंका भी सद्भाव मानना चाहिये ।
सूझ है। वैशेषिकएक ताना कसा है। सामान्य रूपले जो
पाँच तत्व
अनुमान पांच या ६ वर्ष हुए जब काशी विश्व विद्यालय में पंचमहाभूत परिषद् हुई थी उसमें नवीन वैज्ञानिकों को भी निमंत्रण दिया गया था, वैज्ञानिकोंने कहा कि आप लोग सबसे पूर्व भूतका लक्षण करें इस पर वैदिक दार्शनिकोंने पृथ्वी, अमि वायु, जल. आकाशको मूल पदार्थ बताया। वैज्ञानिकोंने इसका जोरदार खंडन किया और कहा कि ये मूल भूत पदार्थ नहीं है। उन्होंने कहा कि-
आप हमें जल के परमाणु दे दें हम उनकी भाग, हवा, आदि बना देंगे, इसी प्रकार आपके परमाणुओंसे जल आदि इसी तरह अन्य परमाणुओं से भी । वास्तव में जल आदि सब पदार्थ आक्सिजन आदि गैसों के समिश्रण से बने हैं।
वैदिक है
जहां यह वर्तमान विज्ञानके विरुद्ध हैं वहां यह पंचभूत कल्पना वैदिक साहित्य से भी सर्वथा विरुद्ध हैं। क्योंकि वेदों तथा ब्राह्मण उपभिषवादिमें कहीं भी इनको मूल पदार्थ नहीं माना अपितु इनको अनित्य माना है ।