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यहां एक बात विचारणीय प्रतीत होती है। वैशेषिक और सांख्यमें शङ्कराचार्यसे पहले ही कोई कोई दार्शनिक ईश्वरको निमित्त कारण मानकर इनके सिद्धान्तों में भी ईश्वरका प्रवेश करा चुके थे, क्योंकि वेदान्तसूत्रके मूल सूत्रों में जहां सांख्य और वंशेषिक मतके
'रचनानुपपत्तेश्च ( २।२।१ )
इत्यादि सूत्रों द्वारा प्रधान और परमाणु स्वाभाविक प्रवृत्ति मानने वालोंका खंडन है वहां प्रधान कारणवादी और परमाणु कारण वाही की ही हैसियतसे जगतका कारण केवल प्रधान (प्रकृति) जड़ नहीं हो सकता । उनमें ये दोष है, इत्यादि बालें विखाई गई हैं। और उन सूत्रों से किसी भी प्रकार यह सिद्ध नहीं हो सकता कि सांख्य और वैशेषिक सिद्धान्तोंमें भी ईश्वरका प्रवेश है।
परन्तु, आगे चलकर, बौद्धमतोंके खंडन कर देने पर भी पशुपति ( माहेश्वर दर्शन ) मतके खंडनमें
___ 'पत्युरसामञ्जस्यात् सूत्र पर शङ्कराचार्यजी भाष्य करते हुए कहते हैं
केचित्तावत्सांख्ययोगान्ययाश्रयात कल्पयन्ति प्रधानपुरुपयोः अधिष्ठाता केवलं निमित्तकारणमीश्वरः इतरेतर विलक्षणाः प्रधान पुरुषेश्वरा इति तथा वैशेषिकादयोषिकेचित् कथञ्चित्स्वप्रक्रियानुसारेण निमित्त कारण ईश्वर इति वर्णयन्ति
अर्थान कोई कोई सांख्य योग सिद्धान्तका श्राश्रय लेकर प्रधान पुरुषसे विलक्षण उनका अधिष्ठाता जगतका केवल निमित्त