________________
( ५७७ ) मानने वाला प्रास्तिक और उसका न मानने वाला नास्तिक,यह अर्थ हो सकता है। ऐसा कैसे कहा जा सकता है. जब उसकी उत्पत्ति एवं स्थिति ईश्वर मानने वाले आस्तिक और नास्तिक' इस भावमें श्रास्तिक-नास्तिक शब्दोंके प्रयुक्त होने के पहले ही सिद्ध हो चुकी है। इसी कारण झात होता है कि वैशेषिक ( कणाद ) सांख्य (कपिल और पूर्व मीमांसक (जैमिनि)ने अपने २ दर्शनी में ईश्वरका उल्लेख तक नहीं किया । नैयायिक गौतमने तथा योगी पतंजलिने क्रमशः
"प्रसारण पुरुष ऋफिल्य दर्शना "क्क श कर्म विपाकाशयरपरामृष्टः पुरुष बिशेष ईश्वर!"
इस तरह आनुषङ्गिक ईश्वर शब्दका प्रसङ्ग उठाया है। इन मुत्रोंमें परमेश्वरार्थक ईश्वर शब्दके प्रयोगसे इसकी पाणिनिसे प्राचीनता मी विचारणीय है तथा महाभाष्यकार पतञ्जलि और योग सूत्रकार पतञ्चखिकी अभिन्नता भी विचारणीय है। ___व्यासजी के ब्रह्मसूत्रोंमें तो नहीं. किन्तु उनकी श्रीमद्भगवद्गीतामें ईश्वर शब्दको प्रयोग कहीं गजा अर्थ में, कहीं परमेश्वरमें दोनों तरहका पाया जाता है जैसे
"ईश्वरोऽहमह भोगीसिद्धोऽहं बलवान्सुखी" यहां ( मालिक ) राजा अर्थ में--- "ईश्वरः सर्व भूतानां हृदेशेऽर्जुन तिष्ठति"
यहां परमेश्वर अर्थम. यह विचारणीय है । वस्तुतः देखा जाय तो इसके सिद्धान्तोंमें ईश्वर कुछ आवश्यक वस्तु नहीं दीखता।
करणादने अपने ब्लः पदार्थोंके झानसे