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यह मोक्ष तत्वज्ञानसे प्राप्त होता है ।
(८) पुनर्जन्मवाद - यह जीव कर्मानुसार अनेक शरीरोंको धारण करता रहता है ।
(६) पीलुपाकबाद - पाक दो प्रकारके माने जाते हैं (१) पिठपाक (२) पीलुका |
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(१) पिठरपाक - नैयायिकों का सिद्धान्त है कि घढेको आग में डालने पर, घढेका नाश नहीं होता अपितु सिद्रामेंसे होकर गरमी परमाणुओंके रंग को बदल देती है, अतः घड़ेका पाक होता है परमाणुओंका नहीं। इसका नाम पिठरपाक है।
(-) पीलु (अणु) पाक, वैशेषिकके मत अनिके व्यापारसे परमाणु पृथक पृथक हो जाते हैं। पुनः वे ही परमाणु पक कर लाल होकर पुनः घटका रूप धारण करते हैं। इसे कहते हैं पीलुपाक अर्थात् परमापाक, वैशेषिक पीलुपाकवादी हैं।
अभिप्राय यह है कि वैशेषिक के मत में ६ पदार्थ हैं उनमें से ईश्वर दव्य ही हो सकता है अतः हमने द्रव्यके भेद लिखे हैं । उन में माहीको ईश्वर कह सकते हैं शेष द्रव्योंको तो किसीने भी ईश्वर नहीं माना है । परन्तु वैशेषिकों का आत्मा ईश्वर नहीं हो सकता क्योंकि वह स्वभावसे ज्ञानशून्य एवं जड़ हैं तथा अनन्त हैं । परन्तु ईश्वरको स्वभावसे ही आनन्दस्वरूप, सर्वव्यापक और सर्व माना जाता है ( श्राष्ट जो कि जगतका निमित्त कारण है वह भी ईश्वर नहीं है क्योंकि वह भी जड़ है वास्तव में न्याय और वैशेषिक या दर्शन हैं। चार्वाककी तरह उनके यहां भी चैतन्य और ज्ञान आदि प्रकृतिके ही कार्य हैं। यही कारण हैं कि इनको अवैदिक दर्शन माना जाता था। किसी कविने कहा है कि