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( पगल (७) भावना (E) धर्म
(6) अधर्म मुक्त अवस्थामें केवल सामान्य गुण ही रह जाते हैं, और बुद्धि, सुख. दुःख, इच्छा आदि विशेष गुणाका नाश होजाता है।
वैषशिक दर्शनके मूलसिद्धान्त निम्न हैं।
(१) परमाणुवाद, जगतके मूल उपादान परमाणु हैं। भिन्न भिन्न परमाणुओंके संयोगसे भिन्न २ वस्तुयें बनी हैं।
(२) परमाणुओंमें संयोगविभागका निमित्तकारण (अदृष्ट) जीवोंके कर्म अर्थात् धर्मा धर्म हैं।
(३) अनेक आत्मवाद, आत्मा अनेक है तथा अपने २ अक्षनुसार कर्मफल भाग करने के लिये वे उपयुक्त शरीर धारणा करती हैं।
(४) असत्कार्यबाद-कार्य अनित्य है, उत्पसिसे पूर्व कार्यका सर्वथा अभाव रहता है. विनाशके बाद फिर उसका अभाव हो जाता है।
मन और आत्माके संयोगसे आत्मामें उत्पन्न होता है।
(५) परमाणु नित्यवाद--परमाणु नित्य हैं. निरवयव होनेके कारण परमाणुओंका कभी नाश नहीं होता है. कार्य द्रव्य सापयय होने के कारण अनित्य हैं।
अवयवोंका विच्छेद होना ही नाश कहलाता है। (६, षटपदार्थवाद-पदार्थ छ ही हैं जैसा कि पहले लिख आए। (७) मोक्ष. अात्माके विशेष गुणांके नाश होनेका नाम मोक्षहै।