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शिरोमणि सृष्टिकर्त्ता पर पच परिचय नामसे एक सुन्दर पुस्तक लिखी हैं। उसमें आपने भी सांख्यको ईश्वरवादी माना है। किन्तु उन्होंने इन पूर्वोक्त दोनों महानुभावोंकी तरह सूत्रोंके wara नहीं किया है। इसके लिये हम आपको धन्यवाद देते हैं । आपके लेखका सारांश यह है कि उन सूत्रोंका ( जिनसे सांख्य को अनीश्वरवादी कहा जाता है ) अर्थ तो वही है जो अनीश्वरवादी करते हैं। अर्थात् कपिलाचार्यने ईश्वरका एटन किया है यह तो ठोक हैं. परन्तु वह हृदयसे नहीं किया है। अपितु प्रतिपक्षीको चुप करनेके लिये दबी जवानसे खएडन किया है । आपने अपनी पुष्टिमें विज्ञानभिक्षु का प्रमाण भी दिया है । तथा वही युक्ति भी दी है कि सूत्रमें "ईश्वर सिद्धेः " शब्द ही यह सिद्ध करता है कि यह खण्डन प्रतिपक्षीको चुप करानेके लिये किया है श्रन्यथा आचार्य सूत्र "ईश्वराभावान" ऐसा बनाते। आगे आप ने भी पांचवा अध्यायके वे ही तीन सूत्र देकर यह सिद्ध किया है. कि यह सब खण्डन हार्दिक नहीं है क्योंकि दवी जवानसे किया गया है ।
यह सब आपने बड़ो लच्छेदार भाषा में लिखा है। जिसमें आप साहित्यिक सिद्ध होते हैं। हम आपके ही शब्दों में आपका भाव लिखते हैं।
सूत्रका अर्थ यह है कि अभी तो ईश्वरकी सप्ताहो असिद्ध और विवादास्पद है। जब तक उसकी सिद्धि नहीं तब तक उस असिद्ध ईश्वरके आधार पर हमारे प्रत्यक्ष लक्षणको सदोष बतलाना कहां तक न्याय संगत ठहराया जा सकता है। आगे पांचवी अध्याय के सूत्रोंका अर्थ निम्न प्रकार किया है ।
" इन तीनों सूत्रों का आशय यह है कि ईश्वर की सत्ताका समर्थक कोई प्रमाण नहीं है। फिर बिना प्रमाणके उसकी सिद्धि