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लोकमान्य तिलक श्री. लोकमान्य तिलक का कथन है कि : अथर्व वद के मन्त्र तन्त्र तथा कलदो लोग: यो आहोने ३५र है।" ____ को ५ स्। १३ के सांप उतारनेके, बालिगीना विलीगी. कर गूला, तात्रुध. प्रादि शब्द फलदी जाति के ही शन्न है ।"
अनेक विद्वानों का मत है कि अथर्व वेद' का नामकरणाईरानी भाषा (अवन) शब्द के आधार पर रखा गया है । मन्त्र नन्न भी वहीं के हैं । अश्रवन का अर्थ पुजारी है।
अभिप्राय यह है कि वेदों में आधुनिकईश्वर की मान्यता का अभाव है । जिस प्रकार वेदों में ईश्वर की मान्यता नहीं है उसी प्रकार वेदों में सृष्टि उत्पत्ति का भी कथन नहीं है कथन की तो बात ही क्या है अपितु मृष्टि उत्पत्ति का बलपूर्वक विरोध किया गया हैं। श्री कोकिल्लेश्वर भट्टाचार्य, और वैदिक देवता
आग्न्यादि देवतावर्ग कोई जड़ पदार्थ नहीं हैं. अग्नि श्रादि देवता कारण सत्ता व्यतीत अन्य कोई वस्तु नहीं है, यह सिद्धान्त सुदृढ़ करने के लिये ऋग्वेद में एक और प्रणाली अवलम्बित हुई है । हम पाठकगणों को वह प्रणाली भी दिखा देंगे। ऋग्वेद के अनेक मन्त्रों में ऐसा देखा जाता है कि. जभी उन स्थलों पर किसी देवता का उल्लेख किया गया है तभी एसी बात कही गई है कि, भान्यान्य देवता उस देवता को ही धारणा करते हैं. उस देवता का ही प्रत धारण करते हैं. उस देवता की ही स्तुति करने हैं 'बिदिक महर्षियों के चिन में यदि अनि श्रादि देवताओं
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