________________
यह अर्थ बंधे हुये अंतरात्मा का द्योतक है, तथा च अनुस्वार के जमरण करते समय प्रमोट मिल संद हो जाते हैं। अतः यह पूर्ण बंधन को प्रकाशित करता है. अत: यह बहिरीत्मा है। इस लिए. ॐकार से आत्मा के तीन रूपों का कथन किया गया है।
इम प्रकार कठोपनिषद में प्रात्मा का प्रकरण होने से ॐ शब्द द्वारा प्रात्मा का वर्णन है।
"न हन्यते हन्यमाने शरीरे" कट० उ०२।१०।
यहाँ स्पष्ट शरीर ( श्रान्मा) का कथन है. जिसको वहिष्पक्ष कहा है।
उपरोक्त प्रमाणों से स्पष्ट सिद्ध है, कि 'ॐ' शब्द भी वैविक वांगमय में श्रात्मा का वाचक है। वर्तमान ईश्वर का नहीं। श्रीमान पं० भगवदत्तजोको सम्मति
प्रजापति-पुरुष-ब्रह्म "ब्राह्मणों में आत्माके वर्णनका संक्षेपसे उल्लेख कर दिया गया है, अब आत्माके भी अन्तरात्मा, परमात्माके विक्रय में आहाण क्या कहते हैं, यह लिखा जाता है। वैनिक धर्म आस्तिक धर्म है । चैदिक ऋषि परमात्माके स्मरण किये बिना कोई काम आरम्भ ही न करते थे। परमात्माका निजनाम ॐ है। इस नाम की उन्होंने इतनी महिमा गाई है, कि यज्ञोंमें अहाँ मौन रहना पड़ता है. यहाँ किसी प्रश्न के उत्तरमें ॐ कह कर अपनी स्वीकारी जतानेकी प्रथा चलाई है। इसी प्रोम से सब व्याहतियाँ और उनसे सब बेबोंका प्रकट होना लिखा है। इसलिये इस तत्वका वर्णन करना भी अत्यावश्यक है।