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२.६३ }
विराट पुरुष
गोपथ ब्राह्मणके पूर्वभागके ५८ में लिखा है कि( सपुरुषमेधेनेष्ट्रा विराट् इति नाम धत )
अर्थात उस यजमानने पुरुषमेध यज्ञ करके 'विराट' उपाधि tear पदको प्राप्त किया । पुरुष सूक्त में भी पुरुषमेघ यज्ञका कथन है तथा उसमें लिखा है कि- ( ततो विराट जायत ) अर्थात् उस पुरुषमेध यज्ञसे विराट उत्पन्न हुआ । उसी विराट पुरुषसे यहां सृष्टि उत्पत्तिका वर्णन है । अतः गोपथ के मत से जिस यजमानने विराट पदवी प्राप्त की है. उसकी यह स्तुति है। मीमांसकोंके शब्दोंमें यही अथवा कहलाता है। अभिप्राय यह हैं कि यहां सृष्टि उत्पत्तिका कथन नहीं है अपितु महापुरुषों की प्रशंसा मात्र हैं ।
यहां तो प्रजापतिने सृष्टि उत्पन्न की. इसका अर्थ है उसका व्यवहार बताया। तथा श्रालङ्कारिक कथन भी है। जिसको आज जानना असम्भव नहीं तो कठिन तो अवश्य हैं।
हिरण्यगर्भ आदि
हिरण्यगर्भो भगवान् एष बुद्धिरिति स्मृतः । महानिसि च योगेषु विरिविरित चाप्यजः ॥ महानात्मा मतिविष्णु, शंभुश्च वीर्यवान तथा । बुद्धि प्रज्ञोपलब्धिश्च तथा ख्याति धृतिः स्मृतिः ॥ पर्याय वाचकोः शब्दः महानात्मा विभाव्यते । महाभारत, अनुगीता प० २६