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। : २६४ । या प्राणेन सम्भवत्यदित र्देवता पयो । गुहाँ प्रविश्य तिष्टन्ती या भूतेभिव्य जायत ।। .
कठ० उप० २।११७ इसका भाष्य करते हुये श्री शंकराचार्यजीने लिखा है-- "प्राण" हिरण्यगर्भ.रूपेण"
अर्थात् जो देवता मयी, अदिति प्राणरूप ( हिरण्यगर्भ रूप ) से प्रकट होती है तथा जो बुद्धि रूप गुहामें प्रविष्ट हो कर रहने चाली और भूतों (इन्द्रियों ) के साथ ही उत्पन्न हुई है उसे देखो निश्चय यही वह तत्व है। यहां प्राणका नाम हिरण्यगम है : तथा ऊपरके श्लोकोंमें बुद्धि आदिका नाम हिरण्यगर्भ है।
धाता, विधाता, दो स्त्रियां हैं : ये ते स्त्रियों धाता विधाता च ये च कृष्णाः सिताश्च तंतवस्ते । राज्यहनी यदपि सच्चक्रं द्वादशारं षड् वे कुमाराः परिवर्तयन्ति ते ॥ १६६ ॥ महाभा० भादि० १०३
पाता और विधाता ये दो स्त्रियाहैं. श्वेत और काले धागे दिन और रात्रिका समयहै, बारह भारों वाला पक जो छ कुमारों द्वारा घुमाया जाता है. वह सम्बतसर चक्र ।।
यहां ऐसा कहा गया कि "धाता और विधाता" ये दो स्त्रिणं हैं, और मन्त्रोंमें ऊषा और नक्ता' ये दो स्त्रियां होनेका वर्णन है। इस विषयमें यहां इतना ही कहना पर्याप्त है कि ऊषः काल और 'सायंकाल' का ही दूसरा नाम क्रमशः 'धाता और विधाता है।