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( ४२१ ) सूक्ष्म इति सूक्ष्मविदः, स्थूल इति च तद् विदः । मूर्त इति मूर्त विदोऽमूर्त इति च तद् विदः || २३ || काल इति व काल विदो दिश इति च तद्विदः । वादा इति च वादविदो भुवनानीति तद्विदः || २४ ॥ मन इति मनो विदो बुद्धि रिति च तद् विदः | चितमिति चिराविदो धर्माधर्मौ च तद् विदः ॥ २५ ॥ पंचविशक इत्येके पडविंशति चापरे । एकत्रिंशक इत्याहु रनन्स इति चापरे ॥ २६ ॥ सृष्टि रिति सृष्टि विदो लय इति च तद् विदः । स्थितिरिति स्थिति विदः सर्वे चेह तु सर्वदा ॥ २७ ॥
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श्रर्थान् - मूलतत्व के विषय में अनेक मत हैं । कोई प्राणको मूल मानता है तो कोई भूतोंको। इसी प्रकार कोई गुण. पार, विषय लोक, देव, वेद, यज्ञ, भोक्ता, भोज्य, सूक्ष्म' स्थूल, मूर्त, अमूर्त काल दिशा, वाद, स्वभाव मन, चित्त, धर्म, अधर्म, आदि को मूल तत्व मानते हैं।
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सांरूपवादी २५ तत्वोंको मूल मानते हैं, तो कोई २६ सत्योंको तथा कोई कोई ३१ तत्वोंको मूल मानता है कोई सृष्टिको ही मूल मानता है तो कोई प्रलयको इस प्रकार उपरोक्त सब मत कल्पित हैं
अभिप्राय यह है कि सृष्टि रचना आदिका जितना भी वर्णन हैं वह बौद्धिक व्यायाम मात्र हैं ।
यह कारण है कि वैदिक साहित्य में इस विषय में भयानक मतभेद पाया जाता है। जैसा कि हम पहले दिखा चुके हैं। यहां भी संक्षेपसे प्रकट करते हैं