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( १६९ ) अपने साथ लाता है। फिर जिस प्रकार पिछले अध्याय के भूतविस्ताराधिकरण में दिखलाया गया है जीव जगत् निर्माण करते हैं। पिछले संस्कारों के कारण जीवोंमें बैलक्षण्य होता है. इसलिये एक ही प्रकार के शरीर से सत्र का काम नहीं चल सकता | परिस्थितियां बदलती हैं. सब को अपने अनुरूप शरीर मिल जातं हैं। यों ही मर्ग और प्रतिसर्ग का प्रवाह चला जाता है।
महाप्रलय और नुतन सृष्टि के बीच में जितने काल तक जीष हिरण्यगर्भ में प्रलीन रहते हैं उतने दिनों तक उनके लिये नानात्व लुप्तप्राय रहता है । परन्तु यह लोप भी प्रात्यन्तिक नहीं है । उस अवस्था में भी ज्ञान शक्ति काम करती है और उसके बाद नानात्व का वृक्ष फिर हरा-भरा हो जाता है।"
उपरोक्त लेख से बाबू सम्यूर्गा नन्न जी ने ग्रह सिद्ध कर दिया है कि एक देशीय खन्ड प्रलय का नाम ही महाप्रलय है और वह महाप्रलय भी परमाणु रूप नहीं होती अपितु पृथ्वी का कुछ भाग व्यबहार योग्य नहीं होने का नाम प्रलय है । तथा उस विभाग के व्यवहार योग्य हो जाने का नाम सृष्टि है । इससे हम भी पूर्णतया सहमत है।
लोक मान्यतिलक व विश्व रचना "गुणा गुणेपु जायन्ते तत्रैव नि विशन्ति च ।
महामारत, शांति ३०४२३ इस बात का विवेचन हो चुका, कि कापिल सांख्य के अनुसार संसार में जो दो स्वतन्त्र मूल तत्व-प्रकृति व पुरुष है उनका स्वरूप क्या है. और जन्न इन दोनों का संयोग ही निमित्त कारण हो जाता है। तब पुरुष के सामने प्रकृति अपने