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आन पड़ता है कि सांख्यरचार्य लोग पूर्व कल्पके सिख जीवोंको ही ब्रह्मा, विष्णु, श्रादि के रूपोंमें प्रकट हुए मानते हैं। इस सूत्रे का अभिप्राय है कि विद्यक शानसे जो जीव ईश्वर हो गये हैं या जो अन्य ईश्वर हैं वे या उनका अस्तित्व सांख्य को स्वीकार है।
सत्यार्थ प्रकाश और सांख्य दर्शन कुछ विद्वान अपनीपुधिमें सांख्यसूत्रोंके प्रमाणदेकर यह सिद्ध करनेका प्रयास करते हैं कि संयन में पो सूर ई. निषेधक हैं. उनमें उपादान कारण का निषेध है । अर्थात् सूत्रोंका
अभिप्राय ईश्वरके निमित्त कारमाका निषेध करना नहीं। इस विचारका मूलकारण सत्यार्थ प्रकाश है। अर्थात् ये लोग अपनी स्वतन्त्र बुद्धि से कुछभी विचार नहीं करते तथा न कभी इन दर्शनों के दर्शन करनेका कष्टही उठाते हैं। ये इन सूत्राँका उपरोक्त अर्थ इसलिए मानते हैं च्यू कि सत्यार्थ प्रकाश में ऐसा लिया है। अतः हम उसीपर प्रकाश बालते हैं।
सस्या प्रकाश के सप्तम समुल्लास में, सांख्यदर्शनके तीन सूत्र नो पूर्व पक्षमे ( अर्थात् प्रमहपमें दिये हैं) उनमें एक तो यही प्रसिद्ध सूत्र ।
ईश्वरासिद्धेः । अ० १ । ६३ । तथा दो सूत्र पांचवी अध्यायके एक दसवा और ग्यारहवा ।
"प्रमाणाभावाम सत् सिद्धि"
"भनुमानाभावान्नानुमानम्" इसी प्रकार उसर पक्षमें भी पांचवीं अध्यायके तीन सूत्र दिय