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स्थूल पचमहाभूत मिल कर सोलह तत्वों को केवल विकृति अथवा विकार कहते हैं । पुरुष न प्रकृति है न विकृति" (सां का ३) ।
आगे इन्हीं पछीस तत्वों के और तीन भेद किये गये हैं-अव्यक्त व्यक्त और ज्ञ । इनमें से केवल एक मूल प्रकृति ही अव्यक्त है, प्रकृति से उत्पन्न हुए तेईस तत्व व्यक्त हैं. और पुरुष श है। ये हुए सांख्यों के वर्गीकरण के भेद । पुराण, स्मृति, महाभारत आदि वैदिक मार्गीय ग्रन्थों में प्रायः इन्हीं पचीस सस्वोका उल्लेख पाया जाता है (मैञ्यु ६ । १०. मनु० १४ । १५ देखो ) परन्तु उपनिषलों में वर्णन किया गया है, कि वे सब तत्त्व पर ब्रह्म से उत्पन्न हुए हैं और वहीं इनका विवेचन या वर्गीकरण भी नहीं किया गया है । उनमें इनका वर्गीकरण किया हुआ देख पड़ता है परन्तु वह उपयुक्ति सांख्यों के वर्गीकरण से भिन्न है। कुल सत्व पच्चीस हैं। इनमें से सोलह तत्व तो सांख्य मत के अनुसार ही विकार अर्थात् दूसरे तत्वों से उत्पन्न हुए हैं। इस कारण उन्हें प्रकृति में अथवा मूल भूत पदार्थों के वर्ग में सम्मिलित नहीं कर सकते । अब ये नौ तत्व शेष रहे-१ पुरुष,२ प्रकृति, ३-६ महत् अहंकार
और पांच तन्मात्राएं । इनमें से पुरुष और प्रकृति को छोड़ शेष सात तत्वों को सांख्यों ने प्रकृति-विकृति कहा है। परन्तु वेदान्त शास्त्र में प्रकृति को स्वतन्त्र न मान कर यह सिद्धान्त निश्चय किया है. कि पुरुष और प्रकृति दोनों एक ही परमेश्वर से उत्पन्न होते हैं । इस सिद्धान्त को मान लेने से, सांख्या के 'मूल प्रकृति और 'प्रकृति-विकृति' भेदो के लिये, स्थान ही नहीं रह जाता। क्योंकि प्रकृति भी परमेश्वर से उत्पन्न होने के कारण मूल नहीं कही जा सकती किन्तु वह प्रकृति--विकृतिके ही वर्ग में शामिल होजाती है। अतएव सष्टयुत्पत्ति का वर्णन करते समय वेदान्ती कहा करते हैं. कि परमेश्वर से ही एक ओर जीव निर्धाण हुआ और दूसरी ओर