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शक्ति
त्वमेव जननी मूल प्रकृतिरीश्वरी, त्वमेवाद्य सृष्टिविध स्वेच्छया त्रिगुणात्मिका । कामार्थे सगुणत्वं च वस्तुतो निगु स्वयम् परययस्वरूपात्त्वं हत्या नित्या सनातनी । तेजः स्वरुपा परमा भक्तानुग्रह विग्रहा, dear सर्वेशा सर्वाधारा परात्परा । सर्ववीज स्वरूपा च सर्वपूज्या निराश्रया, सर्वा सर्वतोभद्रा सर्वमंगल मंगला | ब्रह्म वैवर्तपुराण प्रकृति खण्ड २-६६-७-१० श्रहं वसुभिश्चरामि ऋग्वेद । मं० १०-२२५ प्रकृष्ट वाचकः प्रश्च कृतिश्च सृष्टि वाचकः । सृष्टी प्रकृष्टा या देवी प्रकृतिः सा प्रकीर्तिता । देवी मा०
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इस प्रकार मांख्यवादी प्रकृतिको ही इस जगतका एकमात्र स्वतन्त्र कारण मानते हैं तथा ऋग्वेद में जो वागांणी सूक्त वाया है, उसका अर्थ भी वे लोग प्रकृति ही करते हैं। अधिक क्या सांख्याचार्यों के मत में उन सब श्रुतियोंका (जिनमें ईश्वर का कथन बतलाया जाता है ) अर्थ भी प्रकृति परक ही किया जाता है । इसको स्वयं सांख्यसूत्र में ही माना गया है। जैसा कि हम आगे दिखलावेंगे श्री माधवाचार्यने सर्वदर्शन संग्रह में सांख्यका वाक्य इस प्रकार लिखा है ।