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सुलभा का वहां विवाद दिया है। सुलभा संन्यास के पक्ष में थी, और जनक पक्ष में था । जनक ने कहा कि
त्रिदण्ड दिपु यथास्ति मोक्षे। ज्ञानेन कस्यचित् ।
त्रादि कर्म न स्यात् तुन्य हेतौ परिग्रहे ॥ ४२ ॥ इसका खण्ड सुलभा ने किया है। अतः स्पष्ट है कि सांख्य बादी उस समय के संन्यास के भी विरोधी थे । इत्यादि प्रमाणों से सिद्ध है कि कपिल वेद विरोधी मत था। योगी मतमें भी वैदिक क्रिया काण्डों के लिये कोई स्थान नहीं था । तथा न वह ईश्वर की ही कोई प्रथक सत्ता मानता था। इस लिये ये दोनों संप्रदाय एक ही समझे जाते थे। एक बात और भी है कि दोनों में अहिंसावाद की समानता थी तथा वैदिक हिंसा के दोनों ही विरोधी थे।
परन्तु योगमत संन्यास को मानता था । उसमें तप प्रधान था। तथा सांख्य में केवल ज्ञान प्रधान था सांख्य मत उपवास आदि को भी नहीं मानता था। योगमत में क्योंकि तप की प्रधानता थी । और वह कठिनतर हो गई थी, अतः जनता उससे उब गई थी ऐसे समय में सांख्य ने अपने सुगम ज्ञान. मार्ग का प्रचार किया जनता तो प्रथम से ही किसी ऐसे सुलभ धर्म की खोज में थी बस जनता को कपिलका सहारा मिल गया इसलिये योगमत नष्ट प्राय होगया, और भारतमें सांख्य का शब्द गुन्जायमान होने लगा । एक समय था जब बौद्धमत की तरह सांख्य मत का भी भारत में साम्राज्य था। इसके अनेक आचार्य हुये हैं ।
सांख्य तत्वोंकी भिन्न २ मान्यतायें
शान्तिपर्व ० ३०६ से ३०८ तक सांख्योंके २४तत्व इसप्रकार है। १ प्रकृति, २ महन. ३ अहंकार, ४ से ८ तक पांच सूक्ष्म भूतमें
काठमूल प्रकृति हैं, तथा पांच स्थूलभूत और पांच इन्द्रियां, पांच