________________
( ५१४ )
सर्वोऽयमर्थवादा, इत्यदोषः। इस उत्तरसे स्पष्ट सिद्ध है कि जगन रचना श्रादिका कथन केवल आत्मा थबोध कराने के लिये आत्माकी स्तुति (प्रशंसा) मात्र है। वास्तवमें जगतकी रचना आदि नहीं होती ।
ब्रह्म सृष्टि और मीमांसादर्शन 'मृष्टिवाद और ईश्वर' में श्रीशतावधानी जो लिखते हैं कि
"अद्यापि नासदीय सूक्त की सृष्टि रचना का प्रकार ऋषियों के संशय से श्राकान्त हैं और नासदीय सूक्त की छवी और सातवीं ऋचा इनका खण्डन भी कर चुकी है. तो भी व्यवस्थित विचार करने वाले दर्शनकाराने सृष्टि के विषय में क्या र निया है इसका किंचिन दिग्दर्शन कराते हैं । वेद के साथ सबसे अधिक सम्बन्ध रखने वाला पूर्वमीमांसा दर्शन है। इसके संस्थापक जैमिनि ऋषि हैं इनका सृष्टि के विषय में क्या अभिप्राय है, इसका मीमांसादर्शन की माननीय पुस्तकशास्त्रदीपिका भौर श्लोक वार्तिक श्रादि के आधार से निरीक्षण करते हैं।
जैमिनि सूत्रके प्रथम अध्यायके प्रथमपादके पांचवें अधिकरण की व्याख्या करते हुए शास्त्रदीपिकाकार श्री मल्पार्थ सारथि मिश्र शब्द और अर्थका सम्बन्ध कराने वाला कौन है इसका परामर्श करते कहते हैं कि___ "जब सृष्टिकी आदि हुई हो वैसा कोई काल नहीं है । जगन सदा इसी प्रकारका है । यह प्रत्यक्षके अनुसार प्रचलित है, भूतकालमें ऐसा कोई समय न था जिसमें कि यह जगत् कुछभी न था इस जगतकी प्रलय आदिमें कोई भी प्रमाण नहीं है। ___ आगे बढ़ते हुये दीपिकाकार कहते हैं कि बिना प्रमाण के भी यदि यह मानलें कि कुछ भी नहीं था तो सृष्टि बनही नहीं सकती।