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( ५३५ ) याज्ञवल्क्यं च कपिलं च कापालं कौशिकं तथा ।
इससे स्पष्ट है कि सांख्य मतका प्रचार महाभारतके समय में हुआ।
सांख्य सिद्धांत सामान्यतया सांख्यके २४ या २५ तत्व गिने जात है परन्तु इतिहाससे पता चलता है कि पहिले सांख्योंके तत्व निश्चित नहीं थे। महाभारत शान्ति पर्व अ० २७५ में असित और देवलका संयाद दिया है। उसमें सृष्टिके मत्व इस प्रकार गिनाये हैं।
महाभूतानि पञ्चैते तान्याहु तचिन्तकाः । तेभ्यः सृजति भूतानि कान अात्म प्रचोदितः ।। एतेभ्यः यः परं ब्रूयादपत् ब्रूयादसंशयम् ।
इसमें स्पष्ट ही है कि सृष्टिके आठ कारण हैं। पांच महाभूत काल, बुद्धि, वासना । यह निश्चित्त है कि ये सत्व चार्वाक मतके नहीं थे । संभव है सांख्योंके ही ये तत्य हो क्योंकि असिन् व देवल कपिलके शिष्य थे। एक स्थान पर सोल्योंके १७ तत्वोंका उल्लेख है। यं त्रिधात्मानमात्मस्थं वृत्तं षोडपभिगुणः । पाहुः सप्तदशं सारख्यास्तस्मैं सांख्यात्मने नमः ॥
शान्ति पर्व भीष्मस्तव इसमें पांच महाभूत, दशेन्द्रिय और मन ये सोलह तत्व गिना कर ५, वां श्रात्मा मानकर १७ तत्व गिनाये हैं । प्रतीत होता है कि सांख्या में तथा योग मतमें पहिले यही १७ तस्व अथवा कुछ भेदसे दोनोंमें सामानतया माने जाते थे। परन्तु शदमें साल्यके अन्य पञ्चशिख आदि प्राचार्योने तत्वोंकी संख्या बढ़ाकर अथवा