________________
( ४६१ )
इस दिन सर को एफेवर शक्ति के और वैष्णव सम्प्रदाने महत्व दिया ।
ये सम्प्रदाय पहिले वैदिक मार्गों के विरोधी थे परन्तु जय इन्हें वैदिक मार्गीय ब्राह्मणादिकोंने स्वीकार कर लिया तब इनका विरोध शान्त हो गया. बुद्धोत्तर कालीन हिन्दू समाज में इन्हीं धर्मों का महत्व है। वैष्णव के वैदिक धममें मिल जाने पर ही भगयद्गोता तैयार हुई है। इस एकेश्वर भक्ति सम्प्रदायका श्राश्रय लेने वाले लोगोंने हो पौराणिक धर्मका प्रचार किया । वैदिकेतर हीन धर्म कल्पनाओं को तो पुराणोंने बहुत महत्व दिया है। मुहूर्त्त ज्योतिष फल ज्योतिष, ग्रह-नक्षत्र पूजा वृत. तीर्थ, उद्यापन आदि को आगे इन्हीं सम्प्रदायको स्वीकार करने वाले ब्राह्मणांने महत्व देकर अपनी उपजीविका के लिये सामान्य समाज के अज्ञान और dearer पोषण किया।
उत्तर- भारत के पूर्व भाग में काशी- और बिहार प्रांत में वैदिकेतर सुसंस्कृत मानव संघों से जैन और बौद्ध ये दो नये महान धर्म प्रकट हुए। ये भी विश्व-धर्म ही थे । कारण इनमें भी यह विचार मुख्य था कि सारे श्रेष्ट कनिष्ट दर्जेके मानव संयमसे और नीतिसे शुद्ध होकर निःश्रेयस के अधिकारी होते हैं । ये धर्म अधिक पाखंडी या वेद वाह्य नास्तिक थे । इन्होंने वेद देव और यक्ष तीनों पर आक्रमण किया। ये धर्म श्रयोंने निर्माण किये और श्रमण सप्ता धारी जवयादि वर्गके थे। ब्राह्मणोंकी श्रेष्ठता और उनकी रची हुई समाजिक पद्धति बदलने के लिए उन्हों ने वेद, देव और यज्ञ इस मूल आधार पर ही कुठाराघात किया ।
जैन श्रद्ध और न.झ मन्थोंसे जान पड़ता है कि श्रम और मुनिश्रोंने मुख्य मुख्य पखंड (धर्म) फैलाए । चार्वाक अत्यन्त मूल गामी परीक्षक पंडित था। परन्तु महाभारत में कहा है कि वह भी