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भिक्षु मुनि था । परिव्राजिकों और श्रमकी संस्कृति पहिले वैदिकेतरोंमें उत्पन्न हुई थी कारण उसका समाज यहां वैदिकोंकी अपेक्षा पुराना था। सस धारी में दकोंको सामाजिक पद्धतिके दुष्परिणाम पहले उन्हें अधिक महसूस हुए। उन्हें भंसारकी नितान्त दुःखमयता पहले प्रतीत हुई। महाभारत के एक उल्लेख से मालूम होता है कि तक्षक (नाग कुलीन राजा) नम श्रमण हो गया था । आदि की सर्प-सूत्रका कथा से सूचित होना है कि वैदिक आर्य नागोंके बैरी थे। नागोंने जैन तीर्थंकरकी संकटसे रक्षाकी। और नाग तीर्थंकर के मित्र थे, ऐसा जैन कथाओंसे मालूम होता है बुद्ध देव गया सत्ताको पद्धतिमें रहने वाले समाजमें उत्पन्न हुए थे। कृष्णा वासुदेव भी गया तत्र समाज पद्धति वाले वृष्ण गंवाकुलमें उत्पन्न हुई पहल पहल पदिकेतर समाजमे भो जटिल (जटाधारी). मुंडा (मुडे सिर), तापस, परिब्राजक आजीवक, निम्रन्थ नाम और गोटकों के पथ निर्माण हुए और फिर वैदिक लोगों में भी इन मंत्रोंका जन्म हुआ ।
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हिन्दू धर्म समीक्षासे प्रष्ट १३३ - १३५ ।
"वैदिक आर्यों का श्रीत- स्मार्त धर्म"
वैदिकतर लोगों को सामाजिक दासता में रखने के काम में श्रौतस्मार्त धर्म के अनुयायियों ने वैदिक धर्म की पवित्रता का उपयोग किया। उन्होंने दूसरोंको वैदिकधर्माचरणका या उसके स्वीकार करनेका अधिकार ही नहीं दिया। उन्होंने दूसरोंको व्रात्यस्तोम नामक विधि सामवेद के ताराज्य ब्राह्मण में और कात्यायन श्रौतसूत्र में कही गई है। अनुमान होता है कि उसका उद्देश्य श्रवैदिकों को वैदिक बना लेना हैं | परन्तु वह अमल में बहुत कम ही लाई गई
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सोऽपश्यत् नम्र श्रमखं श्रगानम् । - महाभारत श्रादि पर्व ।