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( ४८७ ) से पंचीकरणकी कल्पनाका प्रादुर्भाव हुआ और विधुत्करण पीछे रह गया एवं अन्त में पंचीकरणकी कल्पना सब शान्तियोंको प्राह्य हो गई धागे चलकर इसी पश्वीकरण शब्द के अर्थ में ग्रह बात भी शामिल होगई ! कि मनुष्यका शरीर केवल पंच महाभूतों खे ही बना नहीं है किन्तु इन पंचभूतों मेंसे हरएक पांच प्रकार से शरीरमें विभाजित भी हो गया है. उदाहरणार्थ ला . नांश. अस्थि मजा, और स्नायु ये पांच विभाग अन्नमय पृथ्वी तत्वके हैं इत्यादि (मभा:शां, १८४ | २० | २५) और ( नाम बांध १७३८ दम्रो) ; प्रतीत होता है, कि यह कल्पना भी उपयुक्त छांदोग्योपनिषद्के त्रिवृत्कराके वर्णनसे सूझ पड़ी है। क्योंकि, यहां भी अन्तिम वर्णन यही है कि तज आप और पृथ्वी. इन तीनों में से प्रत्येक, तीन तीन प्रकारसे मनुष्यके देहमें पाया जाता है।" उपरोक्त सृष्टि रचनाका क्रम बैदिक नहीं है. अपितु दार्शनिक है। यह भी परिवर्तित और परिबर्द्धित । वैदिक ऋषियोंने तो सृष्टिको अनादि अनन्त माना है जैसा कि हम प्रमाण सहित लिखचुके हैं।
यदि इसको एक देशीय प्रलय व मृधि रचना माना जाये तो सबका समन्वय हो सकता है। श्रति-स्मृति-पुराणोक्त हिन्दू धममें कुमारिल
और शंकर का स्थान अति स्मृति-पुराणोक्त हिन्दू धर्म की स्थापना की प्रारम्भ होने पर हिन्दू समाज में क्रान्ति कारक विचार-मर रिण और नवजीवन निर्माण करनेवाली हल चल उत्पन्न ही नहीं हुई । उसके बाद भार. तीय समाजमें विशेष उथल पुथलढुई ही नहीं । अपितु,अनेक राज्य उत्पन्न हो कर बिलीन हो गये परन्तु ममाज में संस्था का सामान्य