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( ४६० ) जाती है। ज्योतिषी निश्चय के साथ नहीं कह सकता कि किन खेचर पिएडों पर जीव थारी रहते हैं । सब प्रणियों के शरीर प्रथिवी पररहने व लोंके समान हैं. यह बात क्यों मानी जाय? ऐसी परिस्थति उत्पर मोहती जिनमें एक दूसनेमामलिन युग से पिण्ड एक साथ नष्ट हो जायं या बसने योग्य न रह जायें । सूर्य को किसी प्रकार का आघात पहुंचने से सौर मण्डल के सारे प्रहोंकी यही गति होगी। सूर्य धीरे २ ठण्डा हो रहा है। एक दिन उसकी ठण्डक इतनी बढ़ जायगी कि यदि उस समय उसके साथ कोई ग्रह बच रहा तो वह हम जैसे प्राणियोंके असनेके 'अयोग्य हो चुका होगा। सूर्य आकाश गल्ला में है । यदि इस नीहारिका के जस प्रदेश में, जिसमें सूर्य इस समय है. कोई तोम उत्पन्न हो तो मूर्य परिवार नष्ट हो जायगा। क्षोभ होगा नहीं, यदि होगा तो कब और कैसे होगा, यह सब हम अभी नहीं जानते । विज्ञान को ऐसा प्रतीत हो रहा है कि वायु की सक्रियता कम हो रही है अर्थात् धीरे धीरे सारे भौतिक पिण्ड निश्चेष्ट्र गति हीन होते जा रहे हैं। यदि ऐसा है तब भी संभवतः एक दिन इन पर प्राणी न रह सकेंगे। परन्तु जीव न नहीं होते, वह प्रसुप्त से हो जाते हैं। रसी दशाको जिसमें जगतका बहुत बड़ा भाग नष्ट या बसने या जीवों के भांग के अयोग्य हो जाता है महा प्रलय कहते है । महा प्रलय में उम वण्ड के जीव हिरण्यगर्भ में निमजित रहते हैं। जब फिर परिस्थिति अनुकूल होती है--और अनुकूल परिस्थिति का पुनः स्थापित होना अनिवार्य है. क्यों कि जीवों के भीतर ही तो सारी परिस्थितियोंका भंडार है-तो नयी सृष्टि होती है। जीयों की ज्ञातृत्वादि शक्तियां चिर मुषुप्त नहीं रह सकती क्योंकि अविद्या तो कहीं गयी नहीं है । शक्तियों जब जागरणोन्मुख होती है तो जीव हिरण्यगर्भसे पुनः निकलते हैं। प्रत्येक जीव अपने संस्कार