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यानी निरिन्द्रय सृष्टि में होता है, और इन प्राणियों का आरमा 'पुरुष' नामक अन्य यग में शामिल किया जाता है। इसीलिये सांख्य शास्त्र में सेन्द्रिय सृष्टि का विचार करते समय, देह और
आत्मा को छोड़ कर केवल इन्द्रियोंका हीविचार किया गया है। इस जमत् में सेन्द्रिय और निरिन्द्रय पदार्थों के अतिरिक्त किसी तीसरे पदार्थ का होना सम्भव नहीं इसलिये कहनेकी आवश्यकता नहीं । कि अहंकार से अधिक शाखाएं निकल ही नहीं सकती। इनमें निरिन्द्रय सृष्टिको तामस (अर्थात्-तमोगुण के उल्कर्ष से होने वालो)कहते हैं । साराशं यह है , कि जब अहंकार अपनी शक्तिसे भिन्न पदार्थ उत्पन्न करने लगता है, तब उसी में एक बार तमोगुण का उत्कर्ष होकर एक ओर पाँच ज्ञानेन्द्रियां, पांच कर्मेन्द्रियां और जम मिलकर मंदिर सहित सभूषा ग्यारह इंद्रियां उत्पन्न होती हैं. और दूसरी ओर, तमोगुण उत्कर्ष होकर उसमें निरिन्द्रय सृष्टि के मूलभूत पांच तन्मात्र द्रव्य उत्पन्न होते हैं परन्तु प्रकृति की सूक्ष्मता अब तक कायम रही है, इसलिये अहंकार से उत्पन्न होने वाले ये सोलह तस्व भी सूक्ष्म ही रहते हैं
शब्द, स्पर्श, रूप और रस की सन्मात्राएं-अर्थात् बिना मिश्रण हुए प्रत्येक गुणके भिन्नभिन्न अति सूक्ष्म मूल स्वरूप निरिन्द्रिय-सृष्टि के मूल तत्व हैं और जनसाहित ग्यारह इंद्रिय सेन्द्रिय
सृष्टि की बीज हैं । इस विषय की सांख्य-शास्त्र की उत्पत्ति विचार करने योग्य है, कि निरिन्द्रिय सृष्टि के मूल तत्व (तन्मात्र ) पाँच ही क्यों और सेन्द्रिय सृष्टि के मूल तत्व ग्यारह ही क्यों माने जाते हैं । अर्वाचीन सृष्टि-शास्त्रज्ञो ने सृष्टि के पदार्थों के तीन भेद-धन, द्रव और वायुरूपी किये हैं, परन्तु सांख्य-शास्त्रकारों का वर्गीकरण इससे भिन्न है । उनका कथन है, कि मनुष्य को सृष्टि के सत्र पदार्थों का ज्ञान केवल पाँचज्ञानेन्द्रियों से हुआ करता है, और इन ज्ञानेन्द्रियों की रचना कुछ ऐसी विलक्षण है, कि एक