________________
( ४५१ ) पर उसने ईटोंसे अग्निको (चुनना बनवाना) चुना जिससे पृथ्वी बन गई। उसके ऊपर उसे बैठने का स्थान (प्रतिष्ठा , मिल गया ।
प्रजापति की सृष्टिका सानवाँ प्रकार
आपो वा इदपग्रे सलिल पासीत् । स एता प्रजापतिः प्रथमा चिति मपश्यत् । तामुपाधत्त तदियभवत् ।
(क. यज० स० सं० ५७५) अर्थ--सृष्टि के पहले केवल पानी था, प्रजापति ने प्रथम चिसि = अग्नि में दी जाने वाली आहुति देखी. प्रजापसिने उसकी अधिष्ठान बनाया. तब वह चिति पृथ्वी रूप बन गई।
ते विश्वकर्माऽवीत । उपत्रायानाति नेह लोकोस्तीत्य प्रवीत् । स एतां द्वितीयां चितिमपश्यत् । सामुपायत्त । वदन्तरिक्षमभवत् । (कृ० यजु० ते० सं० ५७५)
अर्थ-विश्वकर्मा ने प्रजापति को कहा कि--मैं तेरे समीप आऊँ ? प्रजापति ने उत्तर दिया कि यहां अवकाश नहीं है । इतने में विश्वकर्मा ने दूसरी चिति - श्राहुति देखी. उसका श्राश्रय किया तब वह चिति अन्तरिक्ष बन गया
स यज्ञः प्रजापतिमब्रवीत् उप स्वायऽ । नीतिनेह लोकोऽन्तीत्य ब्रवीत् स विश्वकर्माणमब्रवीत् उपत्वाऽयानीति केनमोपैष्यतीति । दिश्यामिरित्य ब्रवीत्तम् । दिश्याभिरुतत्ता उपाधत्त । ता दिशोभवन् । (कृ० यजु० ते० सं ५५७५)
अथं—उस यज्ञ पुरुष ने प्रजापति से कहा कि मैं तेरे समीप पृथ्वी पर पाऊं ? प्रजापति ने कहा कि यहां जगह नहीं है । तब उस यज्ञ पुरुष ने विश्वकर्मा को पूछा कि मैं तुम्हारे पास अन्तरिक्ष