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अथवा
१- पानी २ पृथ्वी ३ अन्तरिक्ष ४ स्वर्ग ५ असुर और रात्रि ५ मनुष्य और ज्योत्स्ना प्रकाश ऋतु नक्षत्रादि और सन्ध्या
देवता और दिन ।
प्रजापतिकी सृष्टिका बड़ा प्रकार
आपो वा इदमग्रे सलिलमासीत् । तस्मिन् प्रजापतिर्वायुभूस्वाचरत् । य इमाम पश्यतां वराहो भूत्वाऽहस्तां विश्वकर्मा भूत्वा व्यया सा प्राथत। स पृथिव्य भवत्तत्पृथिव्यै पृथिवीत्वम् । (क्र० यजु० ० सं० ७११४)
अर्थ- सृष्टि के पूर्व केवल पानी ही था. प्रजापति वायु रूप हो कर उसमें फिरने लगा : के को देखा। उसे देख कर प्रजापति ने वराह-सूअर का रूप धारण किया और पानी में से पृथ्वी को खोद कर ऊपर ले आया ? फिर बराह का रूप छोड़ कर प्रजापति विश्वकर्मा बना और पृथ्वी का म र्जन किया. फिर उसका विस्तार किया, जिससे वह बड़ी पृथ्वी बन गई। विस्तार के कारण से ही इस पृथ्वी का पृथ्वीपन है ।
आपो वा इदमग्रे सलिल मासीत । स प्रजापतिः पुष्करपर्णे वातो भूतोऽलेलायत् । स प्रतिष्ठां नाविन्दत । स एतदप कुलायमपश्यत् । तस्मिन्नमिचिनुत । तदियम भवत् । ततो म प्रत्यतिष्टत् । ( कु० यजु० ० ० ५/६ ४)
अर्थ- सृष्टि के पूर्व केवल पानी ही था, वह प्रजापति पवन रूप हो कर कमल पत्र पर हिलने लगा, उसे कहीं भी स्थिरता नहीं मिली. इतने में उसे शेवाल (काई) दिखाई दी ? उस शेबाल