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सृष्टि रचना रहस्य
" सृष्टि के आरम्भ में केवल एक श्रात्मा ही था उसके अतिरिक्त और कुछ भी नहीं था। उसने लोक रचना के लिये ईक्षण. विचार किया और केवल सङ्कल्पसे ही अम्भ मरीचि और मर इन तीनों लोकोंकी रचना की इन्हें रचकर उस परमात्मा ने उनके लिये लोकपालों की रचना करने का विचार किया और जल से ही एक पुरुष की रचना कर उसे अवयव मुक्त किया परमात्मा के सङ्कल्प से ही उस विराट पुरुष के इन्द्रिय, इन्द्रियगोलक और इन्द्रियाधिष्ठाता देव उत्पन्न हो गये। जब वे इन्द्रियाधाता देवता इस महा समुद्र में आये तो परमात्मा ने उन्हें भूख-प्यास से युक्तकर दिया। जब उन्होंने प्रार्थना की कि हमें कोई ऐसा आयसन प्रदान किया जाय जिसमें स्थित होकर हम अन भक्षण कर सकें । परमात्मा ने उनके लिये एक गौ का शरीर प्रस्तुत किया. किन्तु उन्होंने यह हमारे लिये उपयुक्त नहीं है ऐसा कहकर स्वीकृत कर दिया। तत्पश्चात् बोड़ेका शरीर लाया गया किन्तु वह भी अस्वीकृत हुआ । अन्त में परमात्मा उनके लिये मनुष्यका शरीर लाया । उसे देखकर सभी देवताओंने एक स्वर उसका अनुमोदन किया और वे सब परमात्मा की आज्ञा से उसके भिन्न भिन्न अवयवों में बाक प्राण. चक्षु आदि रूपसे स्थित होगये फिर उनके लिये अन्न की रचना की गई। अन्न उन्हें देखकर भागने लगा देवताओं ने उसे वाणी. चक्षु, प्राण एवं श्रोत्रादि भिन्न २. करणों से ग्रहण करना चाहा; परन्तु वे इसमें सफल नहीं हुये अन्त में उन्होंने उसे अपान द्वारा महण कर लिया इस प्रकार यह सृष्टि हो जाने पर परमात्मा ने विचार किया कि अब मुझे भी इसमें प्रवेश करना चाहिये, क्योंकि मेरे बिना यह सारा प्रपत्र अकिञ्चत्कर ही है। अतः वह उस पुरुष की मूर्द्धसीमा को