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असर देखा जो कि दो अक्षर वाला, चार मात्राओं काला सर्व ध्यापी. सर्वशक्तिमान अयातयात-निर्विकार ब्रह्म वाला ग्रामी व्याति और ब्रह्म देवता वाला है। उस ओंकारसे ब्रह्मा ने सर्व काम, सर्व लोक. सर्व देव सर्व यन. सर्व शब्द सर्व वसतियां सर्व भूत और स्थावर जंगम रूप प्राणी उत्पन्न किये ओंकार के पहिले वर्ण से जल, और चिकनापन उत्पन्न किये । दूसरे वर्ण से ज्योति उत्पन्न की।
तस्य प्रथमया स्वरमात्राया पृथिवी मग्निमोष धिवनस्पतीन् ऋग्वेदं भूरिति व्याहृतिर्गायत्रं छन्दस्त्रिवृत्तं स्तोमं प्राचीदिशं बसंतमृतुं वाच मध्यात्म जिह्वा रसमितीन्द्रियाण्यन्वभवत् ।
(गो. ब्रा० पू० भा० ११७) अर्थ- उस श्रीकार की प्रथम स्वर मात्रा स प्रक्षा ने पृथ्वी, अग्नि, औषधि, वनस्पति. ऋगवेद् भू नाम व्याहति. गायत्री छन्द ज्ञान, कर्म और उपासना युक्ति स्तोत्र स्तुति, पूर्व दिशा बसंतऋतु, अध्यात्म माणी. जिला और रस ग्राहक इन्द्रियाँ बनाई।
तस्य द्वितीया स्वरमात्रामरिक्ष यजुर्वेद, भुव इति ध्यान हुतिस्त्रष्टुभं छन्दः पंचदर्श स्तोमं प्रतीची दिशं ग्रीष्मस्तु प्राणमध्यात्मभासिके गन्धघ्राणामितिन्द्रियाएयन्वभवत् ।
(गो. ब्रा० पू० भा० ११८) अर्थ-- उम्मकी दूसरी स्वर मात्रा से ब्रह्मा में अंतरिक्ष, वायु, यजुर्वेद भुव इस प्रकार की व्यानि त्रैष्टुम छन्द. पांच प्राण पांच इन्द्रियों और पांच भूत यो पन्द्रह प्रकार की स्तुति. पश्चिम दिशा ग्रीष्म ऋतु. आध्यात्मिक प्राण. नो नासिका और गंध ग्राहक प्रागणेन्द्रिय बनाये।