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या धमनयः ता नयः । अर्थ---जो धमनियां थी चे नदियां बन गईं।
यदवारेतेय..मुदकं स समुद्रः। अच--जो मूत्राशयका जल था उसका समुद्र मना।
अथ यत्त दजायत सोऽसावादित्यः । अर्थ-- अनन्तर अएडेमें से जो गर्भ रूपमें पैदा हुआ चढ़ आदित्य-सूर्य बना । भगवान स्वयंभू योग शक्ति से पूर्ववृत प्रकृति मय सूक्ष्म शरीरको छोड़ कर सर्व लोक पितामह प्रमाके रूप में उत्पन्न हुआ .
तस्मिन्मएडे स भगवानुषित्वा परिवत्सरम् । खमेवात्मनो ध्यानातदण्डमकरोद्विधा ।।
अर्थ-वह भगवान अंडे में ब्रह्माके एक वर्ष तक निरन्तर रहता रहा और अन्त में उसने अपने ही संकल्प-रूप ध्यानसे उस अण्डे के दो टुकड़े किये।
ताभ्यां स शकलाभ्यां च दिवं भूमि च निममे । मध्ये व्योमदिशश्चाष्टावपां स्थानं च शाश्वतम् ।।
मनु० (१ । १३) - अर्थ- तत्पश्चात् भगवानने उन दो टुकड़ोसे-ऊपरके टुकड़ेसे स्वर्ग और नीचेके टुकड़ेसे भूमि बनाई । बीचके भागसे आकाश
और अाठ दिशायें तथा पानीका शाश्वत स्थान समुद्र बनाया । ___ अण्ड सृष्टिके पश्चात ब्राह्माकी तत्व सृष्टि व श्लोकसे शुरू होना है कारण कि गाथामें 'अमा मूल तथा असौ मंस्कृत शब्द म्राला परामर्शक है। दोकाकारने भी यही अर्थ बनलाया है। यहां