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तत्सदासीत् ।
अर्थ- वह असत् जगत् सत् यानी नाम रूप कार्यकी और
अभिभावुक हुआ।
तदाडं निवर्तत ।
अर्थ - श्रागे चल कर सह जगत अखे के रूपमें बना ।
तत्समभवत् ।
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अंकुरी भूत बीज के समान क्रमसे कुछ थोड़ासा स्थूल बना तत्संवत्सस्य मात्रा मसयत ।
अर्थ- वह एक वर्ष पर्यन्त अंड रूपमें रहा ।
तभिरभिद्यत ।
अर्थ व अंडा एक वर्षके पश्चात् फूटा ।
ते श्राण्डकपाले रजतं च सुवर्णश्चाभवताम् । अर्थ-अंडे के दोनों कपालों में से एक चांदी और दूसरा सोने
का बना ।
तद्यद रजवं सेयं पृथिवी ।
अर्थ-- उनमें ओ चांदीका था, उसकी पृथ्वी बनी 1 यत्सुवर्णं सा द्यौः ।
अर्थ-- जो कपाल सोनेका था उसका उर्ध्वलोक (स्वर्ग) बना ।
यज्जरा ते पर्वताः ।
अर्थ- जो गर्भका श्रेष्टन था उसके पर्वत बने ।
यदुवं स मेघो नीहारः ।
अर्थ - जो सूक्ष्म गर्भ परिवेष्टन था वह मेघ और तुषार बना ।