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अर्थ - इस प्रजापतिको चैन नहीं पड़ा। एकाकी होनेसे रति (आनन्द) नहीं हुई. वह दूसरेको इच्छा करने लगा, वह श्रालिंगित स्त्री पुरुष युगल के बड़ा हो गया. प्रजापरिने अपने दो भाग किये, उसमें एक भाग पति और दूसरा भाग पत्नी रूप मना । याज्ञवल्क्यने कहा कि जिस प्रकार एक चने की दालके दो भाग होते हैं वैसे ही दो भाग उसके हुये श्राकाशका आधा हिस्सा पुरुषसे और आधा हिस्सा स्त्रीले पूरित हुआ, पुरुष भागने स्त्री भाग के साथ रात क्रीड़ा की, जिससे मनुष्य उत्पन्न हुए |
साहेयमीच चक्रेकथं वुमन एवजनयित्वा संभवति इन्त तिरोऽसानीति सा गौरभवदपभ ईतरस्तां समेवाभवत् नतो गावोऽजायन्त । वऽवेत्तराभवदश्वश्र्ष इतरा । गर्दभीतरा गर्दभ इतरस्तांसमेवाभवत्ततो एकशकमजायत । श्रज्ञेतरा त्रस्त इतरोऽचिरितरा मेष इतरस्ताँ समेवाभवत्ततोऽजाय तंत्रमेव यदिदं किंच मिथुन मायोपिल्लिकाभ्यजावयोस्वत्सर्वमसृजत । ( वृहदा० ११४/४ )
अर्थ- स्त्री भागका नाम शतरूपा रखा गया। वह शतरूपा विचार करने लगी कि मैं प्रजापतिकी पुत्री हूं क्यों कि उसने मुझे उत्पन्न किया है और पुत्रीका पिताके साथ सम्बन्ध करना स्मृति में भी निषिद्ध है, तब यह क्या अकृत्य कर डाला ? मैं कहीं छिप जाऊँ! ऐसा सोच कर वह गाय बन गई। तब प्रजापतिने बैल चन कर उससे समागम किया जिससे गायें उत्पन्न हुई। शतरूपा घोड़ी बनी तो प्रजापति घोड़ा चना, शतरूपा गद्दी बनी तो प्रजापति गदहा बना दोनोंका समागम हुआ जिससे एक खुर वाले प्राणियों की सृष्टि हुई पश्चात् शतरूपा बकरी बनी प्रजापति
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