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स्वायंभुव मनु के नाम से प्रसिद्ध है। दूसरे छ: मनुओं के नाम मनुस्मृति के प्रथम अध्याय मे १२ में परमोनो मनाने गये हैं। वे इस प्रकार हैं:-स्वारोचिष १. उत्तम २. तामस ३. रैवत ४, चाक्षुस, विवस्वान । ये सातों अपने २ अन्तर काल में स्थायर जंगम रूप सृष्टि उत्पन्न करते हैं ।
एवं सर्वस सृष्टवेदं मा चाचिन्त्यपराक्रमः । आत्मन्यन्तर्दधे भूयः कालं कालेन पीडयन् ॥
मनु. १ | ५१ अर्थ-मनु. जी कहते हैं कि----अचिन्त्य, पराक्रमशाली ब्रह्मा इस भांति मुझे और सर्व प्रजाको सृजन कर अन्त में प्रलय काल के द्वारा सृष्टि काल का नाश करता हुआ पुनः आत्मा में अन्तर्धान लीन हो जाता है। सृष्टि के बाद प्रलय और प्रलय के बाद सृष्टि इस प्रकार असंख्य सृष्टि प्रलय अतीत में हुए हैं और भविष्य में होते रहेंगे।
यदा स देवो जागर्ति सदेदं चेष्टते जगत् । यदा स्वपिसि शान्तात्मा तदासर्व निमीलति ॥
मनु० १ । ५२ अर्थ-जब वह अमा जागता है, तब यहजगत् चेष्टा-पृवृत्ति युक्त हो जाता है । जब वह सोता है तब सारा जगत निश्चेष्ट हो जाता है । महाभारत में प्रलय का वर्णन इस प्रकार है:
यथा संहरते जन्तून् ससर्ज च पुनः पुनः । .. अनादिनिधनो ब्रह्मा नित्यश्चाक्षर एव च ॥ अहः क्षयमथो वुद्ध्वा निशिस्वममनास्तथा । चोदयामास भगवानव्यक्तोऽहं कृतं नरम ||