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का प्रकृति में या परमात्मा में जो लय होता है उसका नाम प्राकृ तिक प्रलय या महाप्रलय हैं। और किसी संस्कारी श्रात्मा की मुक्ति होना आत्यन्तिक प्रलय कहलाता है । सृष्टि की उत्पत्ति
एकयाsस्तुवत | प्रजापतिरधिपतिरासीत् । तिसृभिरस्तुवत । ब्रह्माऽसृज्यत | ब्रह्मणस्पतिरधिपतिरासीत् । पश्चभिरस्तुवत | भूतान्यसृज्यन्त भूतानां परिधिपतिरासीत् । सप्तभिरस्तुवत | सप्तर्षयोऽसृज्यन्त । वाताधिपतिरासीत् । ( शु० यजु० माध्यं० सं० १४ | २८ ) श्रार्थ--राजाकी ने प्रदेष को कहा कि तुम मेरे साथ स्तुति में सम्मिलित होत्रो हम लोग स्तुति करके प्रजा उत्पन्न करें। देवताओंने यह बात स्वीकार कर ली। प्रजापतिने पहले अकेली बाणी साथ स्तुति की, जिससे प्रजापति के गर्भ रूप से प्रजा उत्पन्न हुई । उसका यह अधिपति हुआ । ( १ ) उसके बाद मारण, उदान और व्यान इन तीनों के साथ प्रजापति ने दूसरी स्तुति की, जिससे ब्राह्मण जाती उत्पन्न हुई, उसका अधिपति देवता ब्रह्मणस्पति हुआ । (२) उसके बाद पाँचों प्राणों के साथ तीसरी स्तुति की उससे पाँच मूत उत्पन्न हुये उनका अधिपति भूत बना 1 ( ३ ) तत्पश्चात् दो कान, दो आँख दो नाक और वाणी इनसानों के साथ प्रजापति ने चौथी स्तुति की तो उससे सप्तऋषि उत्पन्न हुए, धाता उसका अधिपति देव बना ४
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नवभिरस्तुत । पितरोऽसृज्यन्त । अदितिरधिपत्नी श्रासीत् । एकादशभिरस्तुत । ऋतवोऽसृज्यन्त । श्रार्तवा अधिपतय श्रासन् । त्रयोदशभिरस्तुवत । मासा असृज्यन्त ।