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प्रेरणाको करने लांब कर ले तूफ धारण कर उसके चारह विभाग कर, अग्नि जैसा प्रचंड ताप उत्पन्न किया । जरायुज. अंडज, स्वेदज और उद्भिज प्राणियों को जला कर पृथ्वी तत्वको भस्मीभूत किया। इसके वाद अधिक बलवान् वहीं सूर्य सम्पूर्ण पृथ्वी को जल से पूरित करता है। तदनन्तर अग्नि रूप धारण करके जल का तय करता है। अनि क श्राठी दिशा में बहने वाला वायु शान्त कर देता है । अनन्तर वायु को आकाश, अ.कश को मन. मन को भूतात्मा, प्रजापति को अहंकार, अहंकार को भूत भविष्यका ज्ञाता महासत्व-बुद्धिरूप अात्मा-इश्वर और उस अनुपम
आत्मारूप विश्व को शंभु ( रुद्र ) पास कर जाता है। अर्थात् उक्त क्रम से समस्त जगत् का ईश्वर में लय हो जाता है।
ब्रह्म पुराण के ३२२ अध्याय में प्रलयका वर्णन नीचे लिखे अनुसार किया गया है:
सर्वेषामेव भूतानां त्रिविधः प्रति सञ्चरः । नैमित्तिका प्राकृतिक तथैवात्यन्तिकोमतः ॥१।। ब्राह्मो नैमित्तिकस्तेषां कल्पान्ते प्रति सञ्चः । आत्यन्तिको वै मोक्षश्च प्राकृतो द्विपरादिकः ॥२॥
अर्ध-सर्व भूतों का प्रलय तीन प्रकार का है-मित्तिक, माकतिक, और आत्यन्तिक । एक हजार चतुयुग-परिमित ब्रह्मा का एक दिवस होता है. वहीं कल्प कहलाता है । कल्प के अन्त में १४ मन्वन्तर पूरे हो जाने पर सृष्टि क्रम से विपरीत रूप में भू लोक यादि अखिल सृष्टि का ब्रह्मा में लय हो जाता है। पृथ्वी एकार्णव स्वाप बन जाती है और उस समय स्वयंभू जलमें शयन करता है वह नैमित्तिक प्रलय कहा जाता है । इसे ही अन्तर प्रलय अश्या खंड पलय भी कहते हैं। दो पराई वर्षों में तीन लोक के पदार्थों