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सृष्टि विषय में विरोध
(१) असा दम आसीत ( तै० उप० २/७ ) अर्थ-टिके पूर्व यह जगत सद् रूप था | (२) सदेव सौम्येदमग्र आसीत (छान्दो० ६ २ )
अर्थ - उचालक ऋषि अपने पुत्र श्वेतकेतुसे कहते हैं कि सौम्य ? यह जगत पहले सद् रूप ही था ।
ये दोनों उत्तर परस्पर विरोधी हैं। एक कहता है कि जगत पहले सद् रूप था. दूसरा कहता है कि सद् रूप था। यह स्पष्ट विरोध पाया जाता है। ऋतु आगे और देखिये-(३) आकाशः परायणम् (छान्दो० ११६ )
अर्थ- सृष्टिके पूर्व आकाश नामका तत्व था क्योंकि वह परायण अर्थात् परात्पर अर्थात सबसे ऊपर है । (४) नैवेह किञ्चनाय श्रासीत् मृत्युर्वैवेदमासीत् ( वृ० १ २ १) अर्थ-स्पृष्टि के पूर्व कुछ भी नहीं था. यह जगत मृत्यु से
व्यास श्रा ।
(५) तमोवा इदमग्र आसीत् (मैत्र५० ५(२)
अर्थ- सबसे पहले यह जगत अन्धकार मय था । यही भाव मनुरतिके प्रथम अध्यायके पांचवें श्लोक में भी वर्णित है. देखिये(६) प्रासीदिदं तमोभूत-मप्रज्ञातम लक्षणम् । प्रतक्यमविज्ञेयं, प्रसुप्तमित्र सर्वतः ॥ ( मनु०
११५ )
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अर्थ - यह जगत सृष्टिके पूर्व अन्धकार मय था, अज्ञान - • प्रत्यक्ष दृष्टिगोचर नहीं था, अलक्षण अनुमान गम्य नहीं था. श्रत - नर्कके योग्य नहीं था. विशेय शब्द प्रमाण द्वारा भी अज्ञेय था. और सभी आरसे घोर निद्रा में लीन ना था ।
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