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विष्णुनांगयणः कृष्णा कुण्ठी विष्टरश्रवाः ।। १८ ।। उपेन्द्र इन्द्रावरजश्चक्रपाणिश्चतुर्भुजः ॥ २० ।।
अमरकी ११ "वि नारायण. कृष्ात. वैकुण्ठ, विष्टरश्नवा:. उपेन्द्र. इन्द्रावरज, चक्रपाणि चतुभुज ।' ये सत्र नाम विष्णु के हैं और इनके नामों में उपेन्द्र. इन्द्रावरज' थे नाम इनका उपाध्यक्ष होना सिद्ध कर रहे हैं। इन्द्र स्वयं देवोंके अध्यक्ष और उपेन्द्र देवाके उपाध्यक्ष थे । उपेन्द्र इन्द्र की अपेक्षा छोटा था यह सिद्ध करनेकी अावश्यकता नहीं है, क्योंकि यह बात उक्त शब्दास ही सिद्ध हो रही है। तथापि 'इन्द्र । अधर-ज" यह उसका नाम ही सिद्ध कर रहा है कि यह विष्णु इन्द्रसे छोदा है और इन्द्र के पीछे बनाया जाता है । "इन्द्राबरजशब्द इन्द्रसे छोटे उपाध्यक्षका ही भाव बताता है । अाजकल विषका मान इन्द्रसे भी अधिक समझा जाता है. परन्तु वास्तव में अध्यक्षके सन्मुख जितना मान उपाध्यक्षका होना संभव है. उतना ही मान इन्द्र के सामने उपेन्द्र का होना संभव है। परन्तु यहाँ यह बात स्पष्ट होती है कि देवों के राजा मुख्य इन्द्र सम्राट् भारतवर्षमें बहुत कम पाते थे, भारतवर्ष में छाना और यहाँका कार्यप्रबन्ध देखना यह कार्य "उपेन्द्र" का होता था। यह बात विणुके कई नाम देखनेसे स्पष्ट होती है।
नारायण नारायण शब्द का अर्थ इस विषय पर बड़ा प्रकाश डाल रहा है। इसका अर्थ यह है (नारे) नरोंके मनुष्योंके सघोंमें जिसका { अयन ) गमन होता है, उसका नाम नारायण है। मनुष्योंके स'घोंमें जानेका कार्य उपेन्द्र के प्राधीन था । जिस प्रकार इस