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( ४१० ) लगे. ताघदेव मनुजी के प्रति मत्स्य कहने लगा कि, हे मनु तू मेरा पालन कर, और हे मनु! मैं तेरा पालन करूँगा, तब उस मत्स्य की मनुष्य वाणी सुन श्राश्चर्य मान कर मनु जी बोले कि तू काहे से मेरी पालना करंगा, क्योंकि तू सो महा तुच्छ जीव है, तब मत्स्य ने कहा कि हे राजन् ! तू मुझे छोटा सा मत समझ, यह सम्पूर्ण प्रजा जो कुछ तेरे देखने में आती है, सो यह सब बड़े भारी जलों के समूह में डूब जायगी, कुछ भी न रहेगी, सो मैं तिस महा प्रलय कालके जाल समूहसे तेरा पालन करूंगा, अर्थात् उस प्रलय काल के जल में मैं तुझ को नही डूबने दूंगा। तब मनु जी बोले कि, हे मत्स्य तेरा पालन किस प्रकारसे होगा, सो भी कृपा करके आप ही बताइये । ___ तब मत्स्य ने कहा कि, जब तक हम लोग छोटे रहते हैं तब तक बहुत से पापी प्रजा धीवरादि हमारे मारने वाले होते हैं,
और बड़े र मस्य और बड़ी २ मछलियां छोटे २ मत्य और छोटा र मछलियां को निगल जावे हैं, इससे प्रथम समय तो मेरे को अपने कमंडलु में रखलीजिये, तब मनु जी ने उस मत्स्य को कमंडलु में जल भर कर रख लिया. सो मत्स्य जब उस कमंडलु से भी अधिक बढ़ गया, तदनन्तर मनुने पूछा कि, अब अापका मैं कैसे पालन करू? सब मत्स्य ने कहा कि हे राजन् ! एक बड़ा गर्ता वा तालाब वा नदी खुदाकर उसमें 'मुझको पालन कर, सो मत्स्य जब नदी से भी अधिक बढ़ गया तक फिर मनु जी ने पूछा कि, अब मैं तुम्हारा कैसे पालन करू ? तब मत्स्य ने कहा कि, हे राजन् ! अब मुझको समुद्र में छोड़ दीजिये, तब मैं नाश रहित हो जाऊंगा। यह सुन कर मनुजी ने इस नदी को खुदा का समुद्र में मिला दिया. तब वह मत्स्य समुद्र में चला गया। । सो मत्स्य समुद्र में जाते ही शीघ्र ही बड़ा भारी मत्स्य हो