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। ४१८ ) व्याख्या--अंड बादी कहते हैं---नारायण भगवान परम अव्यक्त में व्यक्त अंडा उत्पन्न हुना, और तिस अंडे के अन्दर ग्रह अब जो आगे कहते हैं, सातद्वीप वाली पृथिवी, गमेदिक वर्षण. चात्मा जल. समुद जरायु, मनुष्यादि और पर्वत तिस अंडे विषये यह लोक साता अर्थात् चौदहभुवन प्रतिष्ठित हैं, सो भगवान सिस अण्डे में एक वर्ष रह करके अपने ध्यान से तिस अण्डे के दो भाग करता हुआ । तिन दोनों टुकड़ों में ऊपर ले टुकड़े से आकाश और दुसर टुकड़े से भूमि निर्माण करना भया इत्यादि---
"अहेतुबादिनचाहु:"---
हेतु रहिता भवन्ति हि भावाः प्रतिसमयभाविनश्चित्राः । भावाहते न द्रव्यसंभव रहित खपुष्पमिव !! १ !!.
व्याख्या-~-अहेतु बादी कहन हैं--प्रति समय होने वाले विचित्र प्रकार के जे भाव हैं, वे सर्व अहेतु से ही उत्पन्न होत हैं।
और भाव से रहित द्रव्य का संभव नहीं है, आकाश के पुष्प की तरह । "परिणामवादिनचाहुः"-- प्रति समय परिणामः प्रत्यात्मगतश्च सर्व भावानाम् । संभवति नेच्छयापि स्वेच्छाक्रमवर्तिनी यस्मात् ।।१॥
ध्याख्या--परिणाम बादी कहते हैं- समय २ प्रति परिणाम प्रन आत्मगत, आत्मा २ प्रति प्राप्त हुश्रा, सर्व भावों को संभव होता है. इच्छासे कुछ भी नहीं होता है क्यों कि म्बेरछा क्रमवनि है. और परिणाम नो युगपत सब पदार्थोग है।